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विक्रमा राजकन्या के पास में ही बैठी थी-संगीत के कार्यक्रम से पूर्व वह इस परिवर्तन की बात कहना चाहती थी।
राजकुमारी ने अपने पीछे बैठी हुई आचार्या मंजरी देवी की ओर देखकर कहा-'आचार्याजी! आप देवी विक्रमा का परिचय दें।'
___'जी!' कहकर मंजरी देवी उठी और सबका अभिवादन कर बोली'राजराजेश्वर श्रीमान् प्रतिष्ठानपुराधिपति! पूजनीया श्री महादेवीजी ! और सभी महानुभावो! आज देवी विक्रमा दिव्य संगीत प्रस्तुत करेंगी। इनका परिचय देने से पूर्व मैं अपने मन का आश्चर्य अभिव्यक्त करना चाहती हूं। मैं वर्षों से राजकुमारीजी को संगीत का प्रशिक्षण दे रही हूं। किन्तु मुझे ऐसे एक भी दिन की स्मृति नहीं है, जिस दिन राजकुमारीजी के पिताश्री के अतिरिक्त कोई पुरुष इस आवास में आया हो। आज यहां पुरुष वर्ग को देखकर तथा राजकन्या के वदन पर प्रसन्नता का अनुभव कर मुझे यह आश्चर्य हो रहा है कि यह परिवर्तन घटित कैसे हुआ? मैं इसी आश्चर्य के साथ देवी विक्रमा का परिचय दे रही हूं। देवी विक्रमा अवंती नगरी की सुप्रसिद्ध गायिका हैं। इनकी अवस्था छोटी है, किन्तु राग की जो साधना इन्होंने की है, वह बड़े-बड़े संगीत-साधकों को भी आश्चर्य में डालने वाली है। अभी तीन दिन पूर्व देवी विक्रमा ने 'पटयोग' नामक राग गाया था। उसके प्रभाव से मृदंग स्वयं ताल दे रहा था। ऐसी सिद्धि मैंने पहली बार देखी थी। मझे विश्वास है कि देवी विक्रमा आज भी हमें अपनी सिद्धि के दर्शन कराएंगी।'
इतना कहकर आचार्या बैठ गईं। सुकुमारी के पास बैठी विक्रमा तत्काल उठी और सबका अभिवादन कर बोली-'आचार्या मंजरीदेवी ने मेरा जो परिचय दिया, उस योग्य मैं नहीं हूं। मैं एक सामान्य गायिका हूं। संगीत के प्रति मेरा सघन अनुराग है। इस अनुराग के कारण ही मैंने अनेक दिव्य रागों की साधना की है। आज मैं अपने मन की एक बात अभिव्यक्त करना चाहती हूं। मैं जब राजकुमारी के परिचय में आयी तब मुझे स्पष्ट प्रतीत हुआ कि उनके मन में पुरुष-जाति के प्रति घृणा है, तिरस्कार का भाव है। उनका प्रेम मिला। उन्होंने मुझे सखी माना और अपने जीवन की कहानी मुझे सुनाई। मैंने यत्किंचित् प्रयत्न किया। उनके मन का द्वेष धुल गया और आज ये विवाह करने के लिए सहमत हुई हैं। ये किसी राजा या राजकुमार से विवाह करने में कतराती हैं, किन्तु ये किसी योग्य कलाकार को अपना जीवनसाथी बनाने के लिए तैयार हैं।'
'महाराजा, महारानी तथा अन्य सभी लोग विक्रमा की ओर देखने लगे और उसके शब्दों को पीने लगे।
महाबलाधिकृत नरेन्द्रदेव विक्रमा के रूप में मुग्ध होकर उसे प्राप्त करने का उपाय सोचने में खो गए। दो क्षण रुककर विक्रमा ने कहा- 'मैं सोचती हैं कि आप
११० वीर विक्रमादित्य