________________
नगरी से छह कोस दूर एक अगोचर और झाड़ी वाले प्रदेश में एक भयंकर कूप है। उसमें एक विशाल नाग है। उसके मुंह में एक रूपवती कन्या है। मैं चौंक पड़ता हूंअरे, एक नाग के मुंह में कन्या ! मैं कूप की मेड़ पर खड़ा होकर देखता रहता हूं । मेरे मन में यह विचार आता है कि क्या यही तो चोर का गुप्त स्थान नहीं है ? मैं कुएं में उतरने का विचार करता हूं, इतने में प्रात:काल की झालर बज उठती है और महादेवी मुझे जागृत कर रही होती हैं।'
भट्टमात्र तत्काल बोल उठा, 'महाराज ! यह तो अति उत्तम स्वप्न है। आपने स्वप्न में जो स्थान देखा है, उसकी खोज करने के लिए हमें कल प्रात: ही जाना चाहिए। अभी रात्रि - वेला में कुछ भी दिखाई नहीं देगा। इस स्वप्न का फल यह होना चाहिए कि वह रूपवती कन्या आपको प्राप्त होगी । '
विक्रमादित्य महामंत्री के विचारों से सहमत हुए ।
दूसरे दिन स्नान आदि प्रात:कर्म से निवृत्त होकर विक्रमादित्य महारानी कमलावती के पास गये और स्वप्न की बात बताई ।
'स्वामी! आप सावधान रहें - आपकी कल्पना के अनुसार यदि उस कूप में मांत्रिक चोर होगा तो.....।'
'प्रिये ! यह तो एक विचित्र स्वप्न था । कूप है या नहीं, यह एक प्रश्न है। तुम निश्चिन्त रहो। मैं क्षण भर के लिए असावधान नहीं रहूंगा।'
महाप्रतिहार ने महामंत्री के आगमन की सूचना दी। विक्रम कमलादेवी को कहकर वहां से विदा हुए।
विक्रम और महामंत्री दोनों उत्तम अश्वों पर बैठकर दक्षिण दिशा की ओर चल पड़े।
विक्रम मन-ही-मन जानते थे कि भट्टमात्र ज्योतिर्विद्या में पारंगत हैं, इसलिए उन्होंने स्वप्न का जो फल बताया है, वह अन्यथा हो नहीं सकता । किन्तु ऐसा अनेक बार होता है कि स्वप्न में दीखता है कुछ और उसका यथार्थ रूप कुछ और
होता है। नाग के मुंह में कोई स्त्री कभी हो ही नहीं सकती - किन्तु इस दृश्य का मात्र यही फलितार्थ हो सकता है कि नागरूपी मांत्रिक चोर के पंजे में फंसी हुई कन्याएं मुक्त होने की चेष्टा कर रही हैं।
विक्रम को इस स्वप्न के आधार पर ऐसा प्रतीत हो रहा था कि मांत्रिक चोर अब पकड़ में आ जाएगा। उन्होंने चलते-चलते कहा-'महामंत्री ! तुमने स्वप्न का फल स्पष्ट नहीं किया । मुझे तो ऐसा प्रतीत होता है कि आज मेरी प्रतिज्ञा पूरी होगी। मांत्रिक चोर मेरे हाथों पकड़ा जाएगा और चारों कन्याओं की मुक्ति मेरे द्वारा होगी। नाग चोर का प्रतीक है और वह कन्या चार कन्याओं की प्रतीक है।'
वीर विक्रमादित्य १४५