Book Title: Veer Vikramaditya
Author(s): Mohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 386
________________ सहित नीलम की मुक्तामाला को अपने कब्जे में कर चारों ओर देखा। चलते-चलते उसने महामंत्री के हाथ में बांस की एक नलिका भी पकड़ा दी। वह मुख्य द्वार से होकर वायुवेग से बाहर निकल गया। नीचे चार रक्षक खड़े थे, पर वे कुछ बोले नहीं। नौजवान अपने अश्व पर बैठकर विक्रमगढ़ की ओर चला गया। राजसभा का समय हो चुका था। महाराजा वीर विक्रमादित्य राजसभा में पहुंच गए थे। आज राजसभा खचाखच भरी हुई थी। महामंत्री को न आया देखकर उन्होंने एक व्यक्ति को महामंत्री के भवन की ओर भेजा। राजसभा का संदेशवाहक महामंत्री के भवन पर गया और वहां के सेवक से कहा-'राजराजेश्वर राजसभा में पधार गए हैं और महामंत्री को शीघ्र आने के लिए संदेश भेजा है।' सेवक बोला-'आप मेरे साथ चलें।' दोनों महामंत्री के कक्ष के पास पहुंचे। सेवक ने धीरे से द्वार खोला और भूमि पर सोये हुए महामंत्री की ओर देखकर कहा- 'महात्मन्!' किन्तु सुने कौन? राजसभा का संदेशवाहक भी कक्ष में गया और जहां महामंत्री पड़े थे, वहां जाकर महामंत्री को सम्बोधित किया। पर व्यर्थ । उसने देखा कि महामंत्री की बायीं मूंछ गायब है। अरे, यह क्या? सेवक भी चौंका। संदेशवाहक बोला- 'शीघ्रता से जल का पात्र ले आओ। महामंत्री निद्राधीन नहीं, मूर्च्छित हैं। नीलम की माला वाला स्वर्णथाल यहां रखा रहता था, वह कहां है?' सेवक बोला- 'उस त्रिपदी पर.....अरे, थाल कहां गया?' संदेशवाहक ने उसे पानी लाने के लिए पुन: कहा। जलपात्र आया और साथ-ही-साथ दासियों का समूह भी वहां उपस्थित हो गया। ___ संदेशवाहक ने महामंत्री के मुंह पर शीतल जल के छींटे दिए और कुछ ही क्षणों के पश्चात् महामंत्री ने आंखें खोलीं। उन्होंने संदेशवाहक की ओर दृष्टि करते हुए कहा- 'क्यों समर ! तुम यहां कहां से आ गए ? महाबलाधिकृत का पुत्र कहां गया?' ___ 'महाबलाधिकृत का पुत्र ? महामंत्रीश्री, आप कुछ स्वस्थ हो जाएं। मैं आपको बुलाने आया हूं। राजराजेश्वर राजसभा में पधार गए हैं और उन्होंने आपको याद किया है। आपका स्वर्णथाल चोर उठा ले गया है...आपकी एक ओर की मूंछ भी कटी हुई है।' समर ने कहा। वीर विक्रमादित्य ३७६

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