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सभी राज्याधिकारी भी अपने-अपने आवश्यक कार्यों से निवृत्त होकर अपने वाहनों से भवन से विदा हुए।
राजसभा के मंडप में सबके बैठने के लिए अलग-अलग स्थान निर्धारित थे। सब अपने-अपने स्थान पर बैठने लगे।
महाबलाधिकृत, महाप्रतिहार, महामंत्री, अन्य मंत्रियों तथा अन्यान्य राजाओं के साथ राजकुमार आदि भी आए और यथास्थान बैठने लगे।
चपलसेना भी आ गई। उसके साथ अन्य तीन गणिकाएं भी आयीं।
राजपरिवार के सदस्य आने लगे। वीर विक्रमादित्य की सभी रानियां आ गईं। एकमात्र पट्टमहिषी और महाराज आने शेष थे।
जिन-जिन गृहस्थों के घरों में सर्वहर ने चोरी की थी, वे सब वहां उपस्थित हो गए।
प्रत्येक नर-नारी का मन जिज्ञासा से भर गया था। सभी में सर्वहर को देखने की उतावली थी।
___ अधिकारी वर्ग में एक संशय उभर रहा था कि संभव है चोर सर्वहर ने महाराज के साथ मजाक किया हो। वह आए या न आए।
इस प्रकार एक ओर आतुरता और दूसरी ओर शंका-कुशंका का खुला नृत्य हो रहा था।
सभामंडप में बैठे हुए सभी लोग बार-बार सामने देख लेते थे-अरे! वह तो सर्वहर नहीं है ? सर्वहर कैसा होगा? वह लम्बा होगा या ठिगना? काला होगा या गोरा? इस प्रकार के प्रश्न लोगों के हृदय में उभर रहे थे।
नियत समय पर महाराज और कमलारानी राजभवन से पैदल चलकर मंडप की ओर आए। उन्होंने देखा, हजारों नागरिक बाहर खड़े थे। सारा उपवन जनसंकुल हो रहा था।
महादेवी और महाराज को देखकर लोगों ने हर्षनाद किया। वीर विक्रम और कमलारानी-दोनों लोगों का अभिवादन स्वीकार करते हुए मंडप के द्वार तक पहुंचे। वे भीतर प्रवेश करें, उससे पूर्व ही एक पालकी द्वार के पास आकर रुकी और उसमें से एक तेजस्वी राजकुमार बाहर निकला।
देवकुमार महाराज के पीछे-पीछे सभामंडप में प्रविष्ट हुए। द्वाररक्षक भी राजकुमार को देखकर कुछ नहीं बोले। उन्हें ऐसा ही प्रतीत हुआ कि यह तरुण युवक राजराजेश्वर का ही कोई अतिथि है।
___ महाराज पट्टमहिषी के साथ सिंहासन की ओर बढ़े। देवकुमार अगली पंक्ति में नगरसेठ के पास बैठ गया।
वीर विक्रमादित्य ३८७