Book Title: Veer Vikramaditya
Author(s): Mohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 444
________________ हृदय को शक्ति और शाश्वत सुख प्रदान करने में समर्थ प्रवचनों से जनता के हृदय भीगने लगे। पन्द्रह दिन तक प्रवचन सुनने के पश्चात् पुष्पसेना का हृदय आन्दोलित हो उठा। वीर विक्रम ने तीर्थाटन करने का निश्चय किया और.... पुष्पसेना ने दीक्षा लेने की इच्छा व्यक्त की। आचार्य ने उसे धर्मसंघ में दीक्षित कर लिया। पुष्पसेना धन्य हो गई। उसके जीवन की समस्या सदा-सदा के लिए समाहित हो गई। वह सही रूप में विजेता बन गई। __ मालवपति वीर विक्रमादित्य बहुत बड़े संघ के साथ तीर्थयात्रा के लिए निकल पड़े। छह हजार हाथी! हजारों रथ! हजारों अश्व! हजारों भारवाहक वाहन! हजारों तंबू-शामियाने! हजारों रक्षक, पाकशास्त्री और दास-दासी, उत्तम वैद्य, शल्य-चिकित्सक और हाड़वैद्य। इस प्रकार दूसरी अवंती नगरी जैसा विशाल श्रीसंघ सदाचार का पालन करता हुआ अग्रसर होने लगा। राज्य-व्यवस्था का सारा भार युवराज सवाईविक्रम को दे दिया गया। मनमोहिनी तीर्थयात्रा में साथ गई। यह महान् संघ जब तीर्थयात्रा कर पुन: अवंती लौटा तब पांच महीने और इक्कीस दिन बीत चुके थे। इस तीर्थयात्रा के दौरान मालवनाथ ने एक अरब, सड़सठ करोड़, सत्तर लाख, अड़सठ हजार और सात सौ स्वर्णमुद्राएं दान आदि में खर्च की थीं। अन्यान्य राजाओं ने भी यत्र-तत्र बहुत दान दिया था। - वीर विक्रम को सैंतालीसवां वर्ष चल रहा था। उनकी परोपकार-परायण भावना दिनोंदिन विकसित हो रही थी। और एक दिन राजसभा में धरतीकंप जैसा समाचार आ पड़ा। मालवपति की धरती पर शकों का आक्रमण होने लगा। यह सुन सारी सभा चौंक उठी। दो महीने बीत गए। शकों के अत्याचार चल रहे थे। वीर विक्रम तक दर्दभरी घटनाएं आने लगीं। और उसी समय वीर विक्रम की अतिप्रिय रानी कमलावती बीमार हो गई। चार दिन बाद वीर विक्रम शकों को बोधपाठ देने निकल पड़े। दो वर्ष तक वे अपने राज्य में घूमे और शकों को मार भगाया। वीर विक्रम विजेता बनकर राजधानी लौटे। कवियों ने विक्रमादित्य को 'शकारि' की उपाधि दी। कमला रानी का देहान्त हो गया था। सैकड़ों राजाओं ने महाराज को चक्रवर्ती का पद दिया। वीर विक्रमादित्य ४३७

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