Book Title: Veer Vikramaditya
Author(s): Mohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 437
________________ 'कृपानाथ! तो मैं घरवाली को पूछकर ही निर्णय करूंगा।' श्रीधर रथ में बैठकर घर गया। टूटे-फूटे झोंपड़े के पास रथ रुका। पंडित रथ से नीचे उतरा । घर में गया। सभी बालक नये वस्त्रों में शोभित हो रहे थे। और पत्नी! मानो आज ही परिणीत होकर घर आयी हो, ऐसी नववधू-सी लग रही थी। श्रीधर ने सारी बात कही। रत्नों की पसंदगी के विषय में मां और बेटियों के बीच विवाद प्रारंभ हो गया। श्रीधर बिना किसी निश्चय पर पहुंचे रथ में बैठकर सीधा राजभवन आ गया। वह वीर विक्रम से बोला- 'कृपानाथ! चारों रत्न आप ही रखें, क्योंकि रत्नों की पसंदगी के विषय में घरवालों में विवाद प्रारम्भ हो गया है। लड़कियां जो चाहती हैं, वह मां नहीं चाहती और जो मां चाहती है वह लड़कियां नहीं चाहती।' वीर विक्रम हंस पड़े। वे बोले- 'पंडितजी! चारों रत्न आप ही रखें। मैं आपको एक सुन्दर मकान, दस गांव, दो हजार स्वर्ण मुद्राएं, एक खेत, दो बैल आदि साधन उपलब्ध करा देता हूं। आप सुखपूर्वक रहें और चारों रत्नों की सुरक्षा करें। इनका सदुपयोग करें। पुण्य से पाप दूर भाग जाता है, फिर भी किसी प्रकार की विपत्ति आए तो मुझे याद करना।' श्रीधर रत्नों को लेकर घर आ गया। ७७. पुष्पसेना राजसभा प्रारंभ हुई। उस समय एक परदेशी व्यक्ति वीर विक्रम को उपहार भेंट करते हुए बोला- 'कृपानाथ! पाटलिपुत्र की श्रेष्ठ नवयौवना और रूपवती गणिका पुष्पसेना अवंती में आयी हुई है। वह चोपड़ खेलने में निष्णात है। उसने यह प्रण लिया है कि जो भी व्यक्ति उसको 'चोपड़' के खेल में पराजित करेगा, वह जीवन भर उसकी दासी बनकर रहेगी। इन दो वर्षों में पाटलिपुत्र में इसे कोई नहीं जीत सका। इसने पराजित एक सौ बयालीस व्यक्तियों को शर्त के अनुसार अपना दास बनाकर रखा है। इनमें दस राजकुमार, दो सुभट और बीस श्रेष्ठी हैं। अनेक परदेशी भी हैं।' बीच में ही महामंत्री ने पूछा- 'पुष्पसेना की शर्त क्या है?' _ 'चोपड़ की तीन बाजियां होंगी। जो दो में जीत जाएगा, वह विजित होगा। यदि पुष्पसेना दो बाजियां हार जाएगी तो वह उस विजेता के चरणों में सर्वस्व अर्पण कर दासी बनकर रहेगी।' ४३० वीर विक्रमादित्य

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