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विक्रम बोले- 'हम यहां मार्ग के मध्य में पति-पत्नी के कलह का निपटारा कैसे करें ? आज तुम दोनों मेरे अतिथि बनो और मनुष्य रूप धारण करके मेरे भवन में चलो।'
___ ३७. स्वर्णपुरुष की प्राप्ति चतुर्दशी आ गई। राजभवन के उपवन में उस वृक्ष के नीचे अश्व खड़ा था। वह योगी द्वारा मंत्र-विद्या से भेजा गया था। राजा उपवन में आया और उस घोड़े पर सवार होकर आश्रम की ओर चल पड़ा। ____ आज योगी अत्यन्त आनन्दित था। उसे यह विश्वास था कि वीर विक्रम अपने वचन पर कटिबद्ध रहेगा। वचनभंग करना उसके लिए मरने से बढ़कर है, इसलिए वह अवश्य ही आएगा। उसके आने पर वर्षों से अधूरा पड़ा मेरा यह कार्य पूरा होगा और संसार में जिसे किसी ने प्राप्त नहीं किया, वह स्वर्णपुरुष मुझे मिल जाएगा।
योगी की यह भावना थी कि वह स्वर्णपुरुष को सिद्ध कर संसार में धनकुबेर बन जाएगा। अर्जित किया हुआ धन एक दिन नष्ट हो जाता है, पर स्वर्णपुरुष कभी नष्ट नहीं होता। संसार की समग्र समृद्धि इससे खरीदी जा सकती है। योगी का यह भौतिक स्वप्न था। आज वह पूरा होने वाला था। बत्तीस लक्षणों वाला वीर विक्रम आज उत्तर-साधक के रूप में आएगा और इस हवनकुण्ड में जलकर भस्म हो जाएगा।
___ योगी को अटूट विश्वास था कि विक्रम अवश्य ही आएगा, फिर भी मध्याह्न के पश्चात् भी विक्रम के न पहुंचने पर योगी अधीर हो उठा। उसके चित्त में संशय की चिनगारी प्रकट हुई-विक्रम भूला तो नहीं होगा? वह भयभीत तो नहीं हो गया? इस प्रकार अनेक संशय उसके मन में उभरे और वह विक्रम को देखने के लिए अधीर हो गया।
दिन का चौथा प्रहर प्रारम्भ हुआ। योगी अत्यन्त विह्वल हो उठा। किन्तु उसने उसी विह्वलता के क्षणों में विक्रम को अश्व पर आते हुए देखा । योगी उसका स्वागत करने उठा। जैसे ही विक्रम निकट आया, योगी ने दोनों हाथ ऊपर उठाकर उल्लासपूर्ण शब्दों में कहा- 'मालवनाथ की जय-विजय हो। हे महान् राजन्! आपको देखकर मेरा हृदय नाच उठा है। भगवान् आपको यश, कीर्ति और दीर्घ आयुष्य दें।'
विक्रम अश्व से नीचे उतरे और मधुर हास्य के साथ बोले-'योगिराज ! आपके आशीर्वाद को मैं सिर पर चढ़ाता हूं। मुझे पहुंचने में विलम्ब तो नहीं हुआ?'
१८२ वीर विक्रमादित्य