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'प्रिये! मैं प्रतिदिन रात को कैसे आऊं? महाराज यदि आ जाएं तो तुम्हारी और मेरी क्या दशा हो? और कलिका भी महीने में दो बार ही सहायक बन सकती है।'
'तो फिर दूसरा कोई उपाय नहीं है?' 'तुम बताओ, पहरा कितना जबरदस्त है?' 'एक उपाय है।' 'बोलो।' 'तुम यदि स्त्री-वेशधारण करोतोमालिन के रूप में यहां आ सकते हो।' 'मैं यहां रहूं और कभी महाराज अचानक आ पहुंचे तो?'
मदनमंजरी खिलखिलाकर हंस पड़ी और हंसते-हंसते बोली-'महाराज कैसे आएं? पिछले दो महीनों से वे मेरे आवासगृह में आए ही नहीं। आज जलक्रीड़ा में उन्हें देखा था और इतनी-इतनी रानियों के मध्य रहने वाला राजा समय ही कैसे निकाल सकता है। जब-जब मेरे आवास में आने की बारी आती है तब-तब या तो वे प्रवास पर चले जाते हैं या फिर किसी के दु:ख को दूर करने के लिए रुक जाते हैं।'
विक्रम का हृदय जल-भुन रहा था और....
दोनों कामांध होकर मस्ती में आ गए.... निर्भयतापूर्वक दोनों रतिक्रीड़ा में पागल हो गए।
वीर विक्रम के लिए यह सब असह्य हो रहा था, फिर भी वे धैर्य रखकर बैठे थे।
रात का तीसरा प्रहर पूरा हुआ। ज्ञानचन्द्र ने कहा-'प्रिये ! अब मैं जाताहूं।'
'नहीं, अभी रात बाकी है।' 'प्रात: होते ही मैं फिर जा नहीं सकूँगा।' 'मैं दिन में तुमको यहीं छिपाकर रखूगी।'
'नहीं, मंजरी! यह खतरा नहीं लेना चाहिए।' कहकर ज्ञानचन्द्र शय्या से नीचे उतरा। रानी भी नीचे उतरी और ज्ञानचन्द्र का आश्लेष करती हुई बोली'अब तुम कब आओगे?'
___ 'कलिका समझने वाली नहीं है, इसलिए पन्द्रह दिन तक तुम्हें भी और मुझे भी वियोग की शय्या भोगनी पड़ेगी। यदि कोई दूसरा उपाय हाथ लगा तो मैं अवश्य आऊंगा।'
दोनों आलिंगनबद्ध हो गए। दोनों ने एक-दूसरे को चुम्बन से भिगो दिया और ज्ञानचन्द्र आलिंगन से छूटकर पेटी के पास गया। हाथ में पिच्छी लेकर वह
वीर विक्रमादित्य ३२३