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सिंह आश्वस्त होकर चला गया।
महाराजा से मिलने के लिए आने वालों में महामंत्री, अन्य पांच-सात मंत्री और महाबलाधिकृत भी थे। वीर विक्रम ने नगररक्षक के घर पर हुई चोरी की घटना उन्हें सुनाई। सब अवाक् रह गए। उसी समय महाप्रतिहार अजय दस वर्ष के एक बालक को साथ लेकर आया। वीर विक्रम ने अजय की ओर प्रश्नभरी दृष्टि से देखा।
__ अजय बोला- 'कृपानाथ! यह बालक बांस की एक नलिका लेकर आया है।'
___'ओह! चोर का संदेश?' फिर बालक की ओर देखकर कहा-'तुझे नलिका किसने दी?'
'महाराज! कोई एक अपरिचित मजदूर जैसे व्यक्ति ने मुझे पांच रौप्य मुद्राएं देकर इस नलिका को यहां पहुंचाने के लिए कहा था।' कहकर बालक ने वह नलिका महाराजा के हाथ में सौंप दी।
'तुझे देने वाला व्यक्ति कैसा था?'
'वैसे तो वह बहुत मोटा-ताजा था। उसकी मूंछे भरावदार थीं, किन्तु उसके कपड़े मैले थे।'
'उसका नाम बता सकते हो?' 'नहीं, महाराज ! मैंने तो उसे आज पहली बार देखा था।' 'क्या तू उसे दूसरी बार देखकर पहचान लेगा?' 'हां, महाराज! उसकी मूंछे मुझे याद हैं।'
वीर विक्रम ने बालक को विदाई दी और स्वयं नलिका में से ताड़पत्र निकाल कर पढ़ने लगे। पत्र पढ़कर वीर विक्रम अवाक रह गए। राजसभा का समय हो चुका था, इसलिए वीर विक्रम एक रथ पर चढ़कर विदा हो गए। आज राजसभा खचाखच भरी हुई थी।
देवकुमार राजसभा में नहीं आया। वह संदेश भेजकर अपनी मां से मिलने विक्रमगढ़ चला गया।
मध्याह्न तक राजसभा में चोर के विषय की चर्चा चली और महाराजा ने चालीस गांव भेंट करने की बात कही। नगररक्षक की असफलता के कारण कोई आगे नहीं आया।
राजा ने गांव में पटहवादन का आदेश दिया और स्थान-स्थान पर यह घोषणा करवाई कि कोई भी व्यक्ति आगे आये और चोर को पकड़ने का साहस दिखाकर, चालीस गांव का पट्टा हस्तगत करे।
३५८ वीर विक्रमादित्य