Book Title: Veer Vikramaditya
Author(s): Mohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 359
________________ सारे नगर में उसकी चर्चा है । अवंती की सारी जनता भयभीत है । राजा और राज्याधिकारी सभी चोर को पकड़ने के उपाय सोचने में लगे हैं। नगरी से बाहर जो दरवाजे हैं, वे सब रात्रि में बन्द हो जाते हैं। प्रत्येक अपरिचित व्यक्ति से पूछताछ की जा रही है। चोर ने तहलका मचा रखा है । ' 'ओह ! ऐसा कौन चोर है ?' 'लगता है, कोई मांत्रिक होना चाहिए।' माली बोला । देवकुमार बोला- 'अरे ! मैंने सुना है कि वह चोर अब जल्दी ही राजभवन चोरी करने वाला है । ' 'नहीं-नहीं ऐसा हो ही नहीं सकता। वहां इतना सघन पहरा है कि एक चिड़िया भी राजभवन में नहीं जा सकती ।' माली ने कहा । देवकुमार मौन रहा। भोजन से निवृत्त होकर विश्राम करते समय उसने मन-ही-मन एक योजना बनाई। दूसरे दिन देवकुमार ने एक नलिका में ताड़पत्र रखा और एक किशोर बालक को उसे राजभवन के द्वारपाल को देने के लिए भेजा और उसे मजदूरी के रूप में पांच रौप्य मुद्राएं भी दे दीं। रौप्य मुद्राओं को लेकर किशोर अत्यन्त हर्षित हो उठा। किशोर नलिका को द्वारपाल के हाथों में सौंपकर चला गया। द्वारपाल ने वह नलिका राजभवन के मुख्य परिचारक के हाथ दी। जब महाराजा वीर विक्रम आरामगृह की ओर गए, तब महाप्रतिहार अजय ने वह नलिका विक्रम को देकर कहा - ' द्वारपाल ने यह नलिका भेजी है ।' बांस की नलिका को देखकर विक्रम चौंके। उन्होंने पूछा- 'कौन दे गया है इसे ?' अजय ने कहा- 'मुझे ज्ञात नहीं है। द्वारपाल को पूछकर निवेदन करूंगा।' विक्रम ने नलिका से ताड़पत्र निकालकर पढ़ लिया । इतने में ही कमलारानी वहां आ पहुंची। उसके पूछने पर विक्रम ने कहा- 'देवी ! चोर बहुत विचित्र लगता है। मुझे सम्मानपूर्वक संबोधन करने के पश्चात् चोर ने लिखा है - मैंने पांच दिन तक लगातार चोरियां की हैं। रात्रि जागरण के कारण मैंने दो दिन तक विश्राम किया है। आप यह न मानें कि मैं आपकी रक्षापंक्ति से घबरा गया हूं। मैं आपसे बदला लूंगा । अब भी आप अपने किए अपराध की स्मृति करें, अन्यथा मुझे कुछ विशेष घटित करना होगा । - 'प्रिये ! यह चोर कौन हो सकता है ? बार-बार मेरे अपराध की बात क्यों कहता है ?' दोनों परस्पर विचार-विमर्श कर ही रहे थे कि अजय कक्ष में आ पहुंचा। ३५२ वीर विक्रमादित्य

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