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'मित्र! अब कठिनाई आ जाएगी। मूल नागकुमार को लाकर यहां बिठा दो।' विक्रम ने कहा।
वैताल बोला- 'महाराज! आपका अन्त:पुर विशाल है। नागकुमारी अत्यन्त रूपवती है। अब पीछे नहीं हटना चाहिए।'
वीर विक्रम सकुचाते हुए बैठे रहे । नागकन्या आयी। तीनों सखियां भी आ गईं। तीनों को राजकुमार के बदले बटुक दिखाई देता था और दूसरों को राजकुमार।
वीर विक्रम नागकन्या का अनिन्द्य रूप देखकर अवाक् रह गए। तीनों सखियां विक्रम के सामने आ गईं। विजया बोली- 'अरे ओ बटुक! हमारे तीनों दंड वापस दे दे। तू एक दरिद्र कंगाल यहां नागकुमारी से शादी करने आया है ? नालायक! हमारे दंड दे दे, अन्यथा हम तुझे कठिनाई में डाल देंगी।'
नागकुमार बने हुए विक्रम मौन रहे।
वहां खड़े अन्य नागपुरुषों को आश्चर्य हुआ कि ये मानवलोक की स्त्रियां नागकुमार को 'बटुक' कहकर क्यों सम्बोधित करती हैं ?
किन्तु तब वैताल ने एक और चमत्कार किया। वीर विक्रम अपने मूल रूप में आ गए। वीर विक्रम को देखकर तीनों सखियां चमत्कृत हुईं और बोलीं- 'महाराज विक्रमादित्य की जय हो । कृपानाथ! रत्नपुर में जब हमने आपको देखा, तब हमारे मन में आपके प्रति रसभाव उत्पन्न हुआ था। हम तीनों की यह प्रतिज्ञा है कि हम एक ही पुरुष से विवाह करेंगी। आप हमारी प्रतिज्ञा को संरक्षण दें और हमें चरणदासी बनाकर स्वीकार करें।'
वैताल मन-ही-मन हर्षित हो रहा था....वीर विक्रम के मन में एक पत्नी के बदले अब चार पत्नियों की चिन्ता खड़ी हो गई।
महाराज विक्रमादित्य का नाम सुनकर नागजाति के लोग बहुत आनन्दित हुए। नववधू के रूप में सज्जित होकर आयी नागकुमारी के मुख पर भी प्रसन्नता की रेखाएं नाचने लगीं।
मूल नागकुमार के पिता विक्रमादित्य के सामने उपस्थित होकर बोले'कृपानाथ! आपकी प्रशंसा हम यदा-कदा सुनते रहे हैं। आज हमारा नागलोक धन्य हो गया। अब आप मेरे पुत्र पर कृपा करें और वह कहां है, इसकी सूचना देकर हमारी चिन्ता मिटाएं।'
वैताल ने तत्काल नागकुमार को उपस्थित किया। विक्रम ने नागकुमार के पिता से कहा- 'आप अपने पुत्र की विवाह-विधि सम्पन्न करें। मैं विवाह करने नहीं आया था।'
३१२ वीर विक्रमादित्य