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'हां, राक्षस ने ही एक बार मुझसे कहा था कि उसके पास अनंतशक्ति वाला एक वज्रदंड है। वह राक्षस यहां आकर सामने पड़े उस आसन पर बैठता है और असुरदेव की प्रार्थना करता है। उस समय वह अपना दंड नीचे रखता है। यदि कोई मनुष्य उस दंड को उठा ले तो उस राक्षस को जीता जा सकता है अथवा उसे मारा जा सकता है।'
'तोतुम अब पूर्ण निश्चिन्त होजाओ। मैं इस दुष्ट को उचित शिक्षा दूंगा।'
राजकन्या कुछ उत्तर दे इससे पूर्व ही दूर से एक अट्टहास आता हुआ सुनाई दिया। राजकन्या तत्काल बोल उठी-'आप पलंग के नीचे छिप जाएं। वह दुष्ट आ रहा है।'
विक्रम पलंग के नीचे छिप गया। अपना थैला भी उसने संभालकर रख दिया था।
उसी समय राक्षस कक्ष में प्रविष्ट हुआ और बोला-'द्वार किसने खोला है?'
'यहां आने की हिम्मत कौन कर सकता है ? आज जब तुम प्रात: बाहर गए थे, तब तुमने ही द्वार खुला रख छोड़ा था।'
राक्षस ने एक बार सिर घुमाया, फिर पूछा- 'मुझे इस कक्ष में मनुष्य की गंध आ रही है। कहां है मेरा शिकार, जल्दी बोल?'
चन्द्रावती खिलखिलाकर हंस पड़ी और हंसती-हंसती बोली-'तुम केवल शरीर से ही मोटे-ताजे हो, तुममें बुद्धि का पूरा अभाव है। इस कक्ष में मैं ही एकमात्र मनुष्य हूं। तुम्हें शिकार करना हो तो मेरा शिकार कर लो।'
'ओह! तुम्हारा शिकार तो कल करूंगा। काया का नहीं, रूप और यौवन का। याद रखना, निर्णय करने का आज अंतिम दिन है।'
यह कहकर राक्षस असुरदेव की आराधना करने के लिए अपने आसन पर बैठा। उसने अपना वज्रदंड पास में रखा और आंखें बंद कर कुछ गुनगुनाने लगा।
वीर विक्रम इस अवसर को चूकना नहीं चाहता था। वह तत्काल पलंग के नीचे से बाहर आया और शीघ्रता से वज्रदंड उठाकर बोला-'ओ दुष्ट ! उठ। एक निर्दोष कन्या पर अपनी शक्ति का प्रयोग करने वाले कायर ! मेरे सामने देख।'
राक्षस की आराधना छिन्न-भिन्न हो गई। उसने वीर विक्रम की ओर देखा। विक्रम के हाथ में अपना वज्रदंड देखकर वह क्षणभर के लिए कांप उठा। वह तत्काल बोला-'ओह! मौत का अतिथि बनकर आया है ? मुझे लगता है कि तेरी मृत्यु पर घर में कोई आंसू बहाने वाला नहीं है।' यह कहकर राक्षस उठ खड़ा हुआ।
विक्रम बोला-'ओ नराधम ! मैं आया हूं तेरी मौत बनकर । मैं एक क्षत्रिय हूं। सामने वाले व्यक्ति को सावधान किए बिना प्रहार नहीं करता। आ मैदान में और युद्ध के लिए तैयार हो जा।'
२६६ वीर विक्रमादित्य