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वह सर्वश्रेष्ठ माना जाता था। मालकोश राग का प्रभाव यह है कि श्रोता मुग्ध हो जाते हैं, स्तंभित हो जाते हैं और जयकेसरी जब यह राग गाता तब यह प्रभाव आंखों के सामने नाचने लग जाता।
विक्रमादित्य को जब यह ज्ञात हुआ तब उन्होंने अपने मित्र अग्निवैताल से कहा-'मित्र! अब हमें भी महाराजा के समक्ष बात करनी चाहिए।'
'हां, किन्तु इससे पूर्व हमें जयकेसरी के पुरुषार्थ को जान लेना चाहिए। मैंने सुना है कि आज वे राजसभा में मालकोश की आराधना करेंगे। हमें भी रात में उसका मुकाबला करना है।' अग्निवैताल बोला।
'तो फिर आज महाराजा को सूचना दें?' विक्रम ने कहा।
'हां, मुकाबला हो तो बड़ा आनन्द आएगा-किन्तु हमें चमत्कार कौनसा करना है?'
'मित्र! हम कोई महान् गायक नहीं हैं। राजकन्या की भावना रागमंजरी सुनने की है। इसलिए यही उचित रहेगा।'
'रूपमाला के वहां जैसे पानी उछाला था, वही न?' 'हां!'
'तब तो हमारी जीत सुनिश्चित ही है। किन्तु परिचय किस नाम से दिया जाए?' अग्निवैताल ने कहा।
विक्रम ने हंसकर कहा- 'जयकेसरी की प्रतिद्वंद्विता में विजयकेसरी नाम ठीक रहेगा।'
'इससे तो विजयसिंह नाम अनुकूल रहेगा।' 'पांथशाला में क्या नाम लिखाया है ?'
'आपका नाम विजयसिंह और मेरा नाम सिंहमित्र लिखाया है।' अग्निवैताल ने कहा।
विक्रमादित्य ने अग्निवैताल का हाथ पकड़कर कहा- 'तुम तो बहुत चतुर हो गए हो!'
'यह आपकी मैत्री का प्रतिफल है।' वैताल बोला।
संध्या के समय विक्रमादित्य और अग्निवैताल राजभवन में गए और महाराजा से मिलकर अपना परिचय एक क्षत्रिय गायक के रूप में दिया।
· महाराजा ने आनन्द व्यक्त किया और पांथशाला से दोनों का सामान लाने के लिए एक रथ भेज दिया। राज्य के अतिथिगृह के एक खण्ड में दोनों मित्र ठहर गए। दूसरे खण्ड में सुप्रसिद्ध गायक जयकेसरी अपने साजबाज के साथ ठहरा हुआ था। १२० वीर विक्रमादित्य