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महाराजा ने प्रसन्नचित्त हो आज्ञा दी।
आराधना सम्पन्न होते ही राजकन्या आगे बढ़ी और दर्शकों के हर्षनाद के मध्य गायक विजयसिंह के गले में वरमाला पहना दी।
__ महामंत्री ने विजयसिंह को धन्यवाद दिया और सबके समक्ष कहा'राजकुमारीजी का निश्चय आज फलित हो गया है। अब शुभ दिन देखकर आर्य विजयसिंह के साथ राजकन्या का विवाह आयोजित होगा।'
सभी दर्शकों ने राजकन्या का जयनाद किया।
२५. पाणिग्रहण समारंभ पूरा हुआ।
महाराजा शालिवाहन ने गांव के बाहर स्थित राजकन्या का भवन विजयसिंह के निवास के लिए निर्धारित किया और दूसरे दिन प्रात:काल ही विजयसिंह रूपी विक्रमादित्य और वैताल राजा के रथ में बैठकर उस भवन की ओर चल पड़े।
विजयसिंह अब महाराजा का दामाद था। उसकी सार-संभाल के लिए दास-दासियों का एक समूह भी भेज दिया गया था।
राजपुरोहित ने उसी सप्ताह के अंत में विवाह का शुभ मुहूर्त निकाला। समूचा नगर इस समाचार से उत्साहित हो गया।
महाराजा शालिवाहन ने एक ही बेटी होने के कारण विवाह का समारंभ अत्यन्त भव्य हो, इस दिशा में मंत्रीवर्ग पूर्ण सावधान था।
दूसरे ही दिन से राजकन्या के विवाह की तैयारियां होने लगीं। महान् गायक जयकेसरी को दस हजार स्वर्णमुद्राएं भेंटस्वरूप दी गई और विवाह तक वहीं रुकने का अनुरोध किया गया। वह प्रसन्नमना रुकने के लिए तैयार हो गया।
विक्रमादित्य का मन अत्यन्त प्रसन्न था। वैताल भी पूर्ण आनन्द में था। वैताल बोला- 'महाराज! आज भाग्यशाली हैं, दीर्घदृष्टि हैं, किन्तु आप विवाह की पूर्व तैयारी नहीं कर रहे हैं।'
'हमें क्या तैयारी करनी है?' 'अवंती से कोई अलंकार अथवा दास-दासी अथवा महादेवी आदि को...।'
"फिर तुम भूल गए। यदि राजकुमारी को ज्ञात हो जाए कि मैं अवंती का राजा हूं तो उसका रोष भड़क उठेगा। मैं अभी सामान्य कलाकार के वेश में हूंहमने निर्धन होने का दिखावा किया है, इसलिए अवंती से यहां कुछ भी ले आना उचित नहीं है। किन्तु तुम्हें एक कार्य करना होगा।'
वीर विक्रमादित्य १२३