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'तो फिर ?'
'छद्मवेश से मैं ऊब गया था । किन्तु छद्मवेश को छोड़ना भी सम्भव नहीं था।' यह कहकर विक्रमादित्य ने संक्षेप में अथ से इति तक की घटना बता दी । अवाक् बनकर कमला सुन रही थी। विक्रमादित्य जब भोजन से निवृत्त होकर उठे तब कमला बोली, 'यह तो अत्यन्त विकट परिस्थिति खड़ी हो गयीसुकुमारी सगर्भा और आप .... ।'
बीच में ही मुखवास लेते हुए विक्रम ने कहा- 'प्रिये ! वियोग से प्रेम वृद्धिंगत होता है और मातृत्व की प्राप्ति के पश्चात् नारी के अन्त:करण में वात्सल्य का झरना फूट पड़ता है । यह वात्सल्य ही उसके मनोभावों को बदल सकता है।'
कमला कुछ उत्तर दे, उससे पूर्व ही एक परिचारिका ने खण्ड में प्रवेश करते हुए कहा, 'महामंत्री आए हैं । '
'उनको यही ले आ ।'
‘जी!' कहकर परिचारिका चली गई ।
कमला भी अन्य कक्ष में जाने के लिए अग्रसर हुई। विक्रम ने उसको वहीं रुकने के लिए कहा। वह स्वामी के पास एक आसन पर बैठ गई ।
महामंत्री खंड में प्रविष्ट हुए और विक्रमादित्य की ओर प्रसन्नमुद्रा में देखते हुए बोले, 'महाराज की जय हो ।'
'आओ, भट्टमात्र ! मेरे अकस्मात् आगमन से आश्चर्य तो हुआ ही होगा ?' 'हां, महाराज! आपकी सूचना मिल जाती तो आपका स्वागत करने का अवसर जनता को मिलता ।'
'यहां पहुंचने की इतनी आतुरता थी कि मैं सीधा राजभवन में ही पहुंचा। अच्छा, राज्य में लोग तो सुखी हैं ?'.
‘हां, कृपावतार! लोग सर्वथा सुखी हैं।'
'बाहर का कोई आक्रमण अथवा.....।'
'नहीं, महाराज! अवंती की ओर देखने की शक्ति किसमें है ?'
'तो फिर तुम्हारे नयनों में चिन्ता के भाव कैसे दीख रहे हैं ? मुख पर भी कुछ उदासीनता उभरती -सी लगती है.... । '
'आपका अनुमान सही है - गत दो महीनों से अवंती में एक विकट परिस्थिति सामने आयी है।'
रहा है । '
'परिस्थिति ! कैसी ?' प्रश्न के साथ ही विक्रम आसन से उठ खड़े हुए। 'एक चोर नगरी में आया है और वह हिम्मत के साथ घरों में चोरियां कर
वीर विक्रमादित्य १४१