Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थ चिंतामणिः
ही शास्त्री कारणता नहीं आ सकेगी । इष्टदेव पूजा आदि भी कारण हो सकते हैं । अब पूर्वोक्त शङ्काका अन्यवादी इस प्रकार निराकरण करते हैं कि
परममङ्गलत्वाद। सानुध्यानं शास्त्रसिद्धिनिबन्धनमित्यन्ये ।
सर्वोत्कृष्ट मंगलकार्य होनेसे यथार्थवक्ता गुरुओं का ध्यान करना शास्त्रकी सिद्धिका कारण है । अतः अन्थकर्ताको उन गुरुओका ध्यान करना आवश्यक है । ऐसा अन्य कह रहे हैं ।
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तदपि ताव | सत्पात्रदानादेरपि मंगलतोपपत्तेः न हि जिनेन्द्रगुणस्तोत्रमेव मंगलमिति नियमो ऽस्ति स्वाध्यायादेर्भङ्गलत्वाभावप्रसंगात् ।
इस पर आचार्य कहते हैं कि नैयायिकों के सदृश अन्य प्रतिवादियों का वह कार्यकारणभाव भी अन्वयव्यतिरेक न घटनेसे वैसा ही व्यभिचारी है ।
क्योंकि श्रेष्ठ पात्रोंके लिये दान देना आदिको भी तो मंगळपना सिद्ध है । केवल जिनेंद्र के गुणका स्तवन करना ही मंगल है, ऐसा कोई एकांतरूपसे नियम नहीं है । यदि नियम मानोगे तो स्वाध्याय कायोत्सर्ग, आदिको मंगलपने के अभावका प्रसंग होगा, जो कि हम और तुम दोनोंको इष्ट नहीं है। यहां पूर्वोक्त शंकाका समाधान अपरजन तीसरे प्रकारसे करते हैं, उसको सुनिये |
परमासानुध्यानाद्मन्धकारस्य णीयत्वेन सर्वत्र ख्यात्युपपत्तेस्तदाध्यानं तत्सिद्धिनिबन्धनमित्यपरे ।
उकृष्ट यथार्थ वक्ता गुरुओंका शिष्टसंम्प्रदाय के अनुसार भले प्रकार ध्यान करने से ग्रंथको धनानेवाले विद्वानके नास्तिकतादोषका निराकरण होजाता है। अतः स्वर्ग, नरक, मोक्ष, पुण्य पाप, प्रेत्यभाव केवलज्ञानी, सिद्ध, आचायोंकी आम्नाय आत्मा और उसके अतीन्द्रियगुण आदि तत्रोको संथकार मानते हैं। ऐसा जानकर पूर्वोक्त तवोंके माननेवाले करोडों आस्तिक लोगद्वारा उन मंथकारके वचनोंका आदर हो जानेसे सभी स्थानों पर उनकी ख्याति, पूजा, प्रतिष्ठा होना बन जावेगा । यों उन गुरुओंका ध्यान ग्रंथ के सिद्धि ( प्रसिद्धि ) में कारण 1 भावार्थ -- ग्रन्थ अपने लिये तो लिखा नहीं जाता है। दूसरे लोग ही लाभ उठावें और गाढवासे लिखा हुआ अन्य समाजमें प्रतिष्ठित बनें इस बुद्धिसे प्रेरित होकर ग्रन्थ लिखनेका यत्न किया जाता है | यदि लाखों आस्तिक लोग अन्थकी प्रतिष्ठा न करेंगे तो कोई उस ग्रन्थ से लाभ भी न उठा सकेगा । तथा च ग्रन्थ लिखना व्यर्थ पडेगा । अतः उक्त कारणमालासे गुरुका ध्यान करना ग्रन्थकी निष्पत्तिका कारण है । इस प्रकार तीसरे सज्जनोंका समाधान है
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तदप्यसारम् ।
नास्तिकतापरिहारसिद्धिस्तद्वचनस्यास्तिकैरादर