Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिंतामणिः
व्यतिरेक बन गया । अर्थात् कपिल आदिकोंने पाप समुदायका क्षय नहीं किया है । अतः वे अथियाने स्थान है। अविधाके आश्रय होनेसे कपिल आदिकोंके वचन पूर्वापर तथा प्रत्यक्ष और अनुमानसे विरोधी हो जाते हैं | कपिल आदिकोके वचन पूर्वापर विरोधी हैं। तभी तो उनके द्वारा अणिकत्र, नित्यत्व आदि एकान्ततत्तोंका प्रकाशन किया गया ज्ञात होता है
और एकान्ततत्त्वके प्रकाशक होनेसे वे परमगुरु नहीं हो सकते हैं। इस प्रकार चार हेतुओंकी मालाके ध्यतिरेकदृष्टांत कपिल, सुगत, जैमिनि आदिक हैं । ये परमगुरु नहीं हैं।
एतेनापरगुरुगणधरादिः सूत्रकारपर्यन्तो व्याख्यातस्तस्यैकदेशविद्यास्पदखेन देशतो धातिसंघातपावनस्वसिद्धेस्सामादपरगुरुत्वोपपत्तेः ।
इस प्रकार अन्धय व्यतिरेक द्वारा हेतुओंका समर्थन करनेसे गणघरको आदि लेकर श्री उमास्वामी सूत्रकारतकके आचार्यगण अपरगुरु अच्छी तरह व्याख्यापूर्वक सिद्ध हो गये । क्योंकि पूक्ति चारों सझेतुओंमें एकदेश लगादेने से अपरगुरुग्ना साध्यतककी व्याप्ति बन जाती है। अर्थात् श्रीगणधर कुंकुंद आदिक आचार्योंने अनेक अनेकांततत्त्वोंका प्रकाशन किया है। इससे उनके वाक्य किसी प्रभाणसे विरुद्ध नहीं हैं। ऐसा होनेसे ही वे एकदेश विद्याके आस्पद बन जाते हैं। तथा एकदेश-विद्याके आस्पद होनेसे एकदेश ज्ञानावरण आदि घातिया कोंके नाश करमेवाले ज्ञात होते हैं और कुछ अंशोमें धातिया कोके नाशक होनेसे अपरगुरु भाने जाते हैं । यो विशेषणसहित हेतुफी सामर्थ्यसे उन गणधर आदिके अपर गुरुपन सिद्ध हो जाता है।
भावार्थ:-हेतु दो प्रकारके होते ह। एक कारकहेतु । दूसरे ज्ञापकहतु । अनुमान प्रकरणके हेतुओंको ज्ञापकेतु कहा जाता है। जैसे अभिको सिद्ध करनेमें धूम और मुहूर्तके पहिले भरणिनम्मत्रका उदय सिद्ध करनेमें कृत्तिका-नक्षत्रका उदय । तथा कार्य करनेवाले साघनोंको कारकहेतु कहते हैं। जैसे धूमका कारकहेतु अग्नि है और घटका कुलाल, मिट्टी, दण्ड, चक आदि । कहीं कहीं कार कहेतु साध्य हो जाता है उस कारकहेतुका कार्य ज्ञापक हेतु बन जाता है । ' जैसे पर्वतो वहिमान् धूमात् । यहाँ कारकहेतु वहिको साध्य बनाया है . और वहिके कार्य धूमको ज्ञापकहेतु बनाया है । अतः न्यायशास्त्रों में ज्ञापक और कारक हेतुके विवेक करनेका सर्वदा ध्यान रखना चाहिये। प्रकरणमें पूर्वोक्त हेतु ज्ञापकहे तु हैं। यदि कारक हेतु होते तो यह व्यवस्था होती कि बर्धमान स्वामीने परमगुरुपनेसे ही घातिया कभाका नाश किया । धातिव्याकमेकि क्षयके निमित्तसे भगवान्को केवलज्ञान प्राप्त हुआ । केवल. ज्ञानके कारण ही भगवान्के वचन प्रत्यक्ष और परोक्षसे अनिरुद्ध पैदा हुए और उन बचनोंको कारण मानकर अनेकान्ततत्त्यका प्रकाशन हुआ । इस प्रकारका कार्यकारणभाव उलटा करनेसे