Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
२ ]
[ ५।१
* सूत्रार्थ - धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, श्राकाशास्तिकाय और पुद्गलास्तिकाय ये 'प्रजीवकाय' हैं ।। ५१ ।।
5 विवेचनामृत 5
यहाँ प्रथम- पहले अध्याय में सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और नयों का प्रतिपादन किया है । द्वितीय-दूसरे, तृतीय-तीसरे और चतुर्थ- चौथे अध्याय में जीवतत्त्व का विविध दृष्टियों से निरूपण किया था ।
अब इस पंचम पांचवें अध्याय में अजीव तत्त्व का निरूपण करते हैं ।
जीवतत्त्व के मुख्य भेद - ( १ ) धर्म, (२) श्रधर्मं, (३) श्राकाश, तथा ( ४ ) पुद्गल ये चार (द्रव्य) 'प्रजीवकाय' होते हैं। ये धर्म आदि चार द्रव्य अस्तिकाय हैं । अस्ति यानी प्रदेश तथा काय यानी समूह । धर्म इत्यादि चार तत्त्व प्रदेशों के समूह रूप होने से 'अस्तिकाय' कहलाते हैं ।
(१) धर्मास्तिकाय, (२) अधर्मास्तिकाय, (३) आकाशास्तिकाय, तथा ( ४ ) पुद्गलास्तिकाय । ये चार अजीव तत्त्व हैं । अर्थात् — जो जीव से भिन्न तत्त्व होते हैं वे अजीव रूप कहे जाते हैं ।
जीव भी आत्मप्रदेशों के समूह रूप होने से अस्तिकाय रूप ही है । किन्तु यहाँ पर अजीव का ही प्रकरण होने से धर्मास्तिकायादि चार तत्त्व अस्तिकाय रूप कहे हैं । धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय इन तीनों के स्कन्ध, देश और प्रदेश इस तरह तीन-तीन भेद तथा पुद्गलास्तिकाय के स्कन्ध, देश, प्रदेश तथा परमाणु इस तरह चार भेद हैं । सब मिलकर अजीवतत्त्व के कुल १३ भेद हैं ।
* वस्तु – सम्पूर्ण पदार्थ 'स्कन्ध' कहा जाता है ।
* वस्तु — पदार्थ का सविभाज्य कोई एक भाग वह 'देश' कहा जाता है ।
अर्थात् - जिसका अन्य विभाग हो सके, ऐसा कोई एक भाग वह देश है । स्कन्ध और देश के सम्बन्ध में इतना ध्यान रखना चाहिये कि सविभाज्य भाग जो वस्तु-पदार्थ के साथ प्रतिबद्ध हो तो
वह देश कहलाता है, किन्तु वह भाग जो पृथग्-भिन्न हो गया हो तो वह भाग देश कहा भी जाए और न भी कहा जाए । पृथग्-भिन्न पड़ा हुआ भाग जिसमें से छूटा पड़ा हुआ है, वह वस्तु-पदार्थ की अपेक्षा विचार करने में आ जाए तो वह देश कहा जाए। क्योंकि, वह जो वस्तु-पदार्थ में से छूटा पड़ा है वह वस्तु-पदार्थ का एक विभाग है । परन्तु मूल वस्तु पदार्थ की अपेक्षा बिना समस्त द्रव्यों में से विभाग - भाग जुदा पड़ता नहीं है । सिर्फ पुद्गलास्तिकाय में से ही विभाग-भाग छूटा पड़ता है । यह विचारणा पुद्गलास्तिकाय को प्राश्रय करके ही है । क्योंकि पुद्गलास्तिकाय के भिन्न-भिन्न विभागों में भी स्कन्ध रूप छूटे पड़े हुए विभाग को स्वतन्त्र वस्तु पदार्थ मानने से ही होता है ।