Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
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५१३५
__ण बन्धविषयक-कोष्ठक "
* सदश कि |卐 गुण समान कि | $ बन्ध होता है ) पुदगल 卐
असदृश * | अगुण समान 卐 | कि नहीं होता है * पंचगुण स्निग्ध तथा
अगुणसमान बन्ध होता है सप्तगुण स्निग्ध (२) चतुर्गुण स्निग्ध तथा
__ सदृश । अगुणसमान बन्ध होता है दशगुरण स्निग्ध
सदृश
पंचगुण रुक्ष तथा सप्तगुरण रुक्ष
सदृश
अगुणसमान
बन्ध होता है
(४) चतुर्गुण रुक्ष तथा
सदृश अगुणसमान बन्ध होता है दशगुरण रुक्ष (५) पंचगुण स्निग्ध तथा
असदृश गुणसमान बन्ध होता है पंचगुण रुक्ष (६) चतुर्गुण स्निग्ध तथा
गुगसमान
असदृश चतुर्गुण रुक्ष
बन्ध होता है (७) पंचगुण स्निग्ध तथा
| सदृश । गुणसमान । बन्ध नहीं होता है पंचगुण स्निग्ध (८) पंचगुण रुक्ष तथा
सदृश पंचगुण रुक्ष
गुणसमान बन्ध नहीं होता है।
* बन्धविषये तृतीयोपवादः * ॐ मूलसूत्रम्
द्वयधिकादिगुणानां तु ॥ ५-३५ ॥
* सुबोधिका टीका * बन्धप्रतिषेधस्यनिषेधमत्र। द्वयधिकादि-गुणानां तु सदृशानां बन्धः भवति । यथा स्निग्धस्य द्विगुणाद्यधिकस्निग्धेन, द्विगुणाद्यधिकस्निग्धस्य स्निग्धेन एवं च रुक्षस्यापिरुक्षेण। एकादिगुणाधिकयोः तु सदृशयोः बन्ध नैव जायते ॥ ५-३५ ।।
* सूत्रार्थ-जो सदृश पुद्गल दो अधिक गुण वाले हुआ करते हैं, उनका बन्ध हुआ करता है। अर्थात्-दो आदि से अधिक गुणवाले अवयवों का सजातीय तथा विजातीय से बन्ध होता है ।। ५-३५ ।।