Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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५।३७ ] पञ्चमोऽध्यायः
[ ७५ पर्याय प्रतिसमय उत्पन्न होते हैं और विनाश पाते हैं। इससे अनित्य अर्थात् सादि-सांत हैं। पर्यायों को अनित्यता व्यक्ति की अपेक्षा है; प्रवाह की अपेक्षा तो पर्यायें भी नित्य हैं।
प्रत्येक द्रव्य में प्रतिसमय अमुक पर्याय विनाश पाते हैं और अमुक पर्याय उत्पन्न होते हैं । ऐसी पर्यायों के प्रवाह नित्य चलते ही रहते हैं ।
पर्याय के प्रवाह का प्रारम्भ अथवा अन्त नहीं होने से प्रवाह की अपेक्षा ये पर्याय अनादिअनंत हैं। द्रव्यों की भाँति कभी भी गुणों से रहित नहीं होते हैं, वैसे ही कभी पर्याय से भी रहित नहीं होते हैं। द्रव्यों में गुण व्यक्ति की अपेक्षा नित्य रहते हैं, जबकि पर्यायों में प्रवाह की अपेक्षा नित्य रहते हैं; किन्तु दोनों रहते हैं तो सर्वदा ।
आत्मा अनन्त गुणों के समुदाय का एक अखण्ड द्रव्य है। किन्तु छद्मस्थ जीव-आत्मा की कल्पना में इसके चैतन्य, चारित्र एवं वीर्यादि परिमित गुण ही ग्राह्य होते हैं। सम्पूर्ण गुणों का अवबोध छद्मस्थ जीव-आत्मा को नहीं होता है। इसी तरह पुद्गल के भी रूप, रस, गन्ध, स्पर्शादि परिमित गुण ही अवबोधित होते हैं ।
आत्मा तथा पुद्गल के समस्त पर्यायों का प्रवाह विशिष्ट ज्ञान यानी केवलज्ञान के बिना नहीं जाना जा सकता है। जिन-जिन पर्याय-प्रवाहों को साधारण बुद्धि वाले भी जान सकते हैं, उनके कारणभूत गुणों का व्यवहार होता है। जैसे–चैतन्यादि प्रात्मा के गुण कल्पना, विचार और वचन द्वारा प्रगट किये जा सकते हैं ।
इसी तरह पुद्गल द्रव्य के भी रूप इत्यादि गुण प्रगटरूप हैं। शेष अकल्पनीय गुण हैं, वे तो सर्वज्ञविभु केवलीगम्य हैं। अनन्तगुण, अनन्तपर्याय के समुदाय को द्रव्य माना है ।
इस प्रकार का कथनभेद सापेक्ष-अपेक्षा सहित है। अभेद दृष्टि से जो पर्याय है वह गुण स्वरूप है। गुण द्रव्य स्वरूप है, अर्थात् गुणपर्यायात्मक ही द्रव्य है। द्रव्य में गुण दो प्रकार के होते हैं। एक साधारण (सामान्य) और दूसरे असाधारण (विशेष)। साधारण जो गुण हैं, वे समस्त द्रव्यों में सामान्य रूप से होते हैं। जैसे-अस्तित्व, द्रव्यत्व, अगुरुलघुत्वादि और जो विशेष गुण हैं वे किसी द्रव्य में होते हैं और किसी में नहीं भी होते हैं। जैसे-चैतन्य (जीव) रूपत्वादि (पुद्गल) ये असाधारण गुण हैं। तज्जन्य पर्याय के कारण ही प्रत्येक द्रव्य की पृथक्ता है-भिन्नता है।
धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय द्रव्य के भी गुण, पर्याय की व्याख्या पूर्ववत् जीव, पुद्गल के समान कर लेनी। विशेषता यही है कि पुद्गल द्रव्य रूपी है और शेष अरूपी हैं । तथा पुद्गल द्रव्य गुरुलघुगुणवाला है एवं शेष द्रव्यों का प्रगुरुलघु गुण है ।। ५-३७ ।।