Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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हिन्दी पद्यानुवाद ]
षष्ठोऽध्यायः
प्रथम भेदे प्रतिभेद संख्या, उनचालीस की कही। उसकी गणना मैं करूं, सुनिए स्थिरता ग्रही ।। अव्रत के भेद पाँच हैं, कषाय के भी चार हैं। इन्द्रिय के भेद पाँच हैं, तथा क्रिया के पच्चीस हैं ।। ३ ।। यों मिलकर सभी ए, उनचालीस भेद हैं। इन प्रत्येक के षट् कारणे, तरतमता रहती है ।। तीव्रभावे मंदभावे, ज्ञात और अज्ञानता । वीर्य अरु अधिकरण धरते, कर्मबन्ध विशेषता ।। ४ ।।
* अधिकरण का वर्णन * ॐ मूलसूत्रम्
अधिकरणं जीवाऽजीवाः ॥ ८ ॥ प्राद्यं संरम्भसमारम्भारम्भ-योग-कृतकारितानुमतकषाय-विशेषस्त्रिस्त्रिस्त्रिश्चतुश्चैकशः ।। ६ ॥
निर्वर्तना-निक्षेप-संयोग-निसर्गा द्विचतुर्वित्रिभेदाः परम् ॥ १०॥ * हिन्दी पद्यानुवाद
अधिकरण के भेद दो हैं, जीव और अजीव से । आद्य जीव अधिकरण जाण, अष्टोत्तर शत भेद से ।। उसकी रीत प्रब वदतां, सुनिये भविक एकमना । सूत्र नवमे उस गणना, की धरो हे भविजना ! ।। ५ ।। समरम्भ समारम्भ और प्रारम्भ तीसरा कहा । मन-वचन-काय योगे, गिनते भेद नव कहा ॥ कृत कारित अनुमति से, होते सत्तावीस खरा । कषाय चार से अष्टोत्तर-शतभेद कहा श्रुतधरा ।। ६ ।। तथा अजीव अधिकरण के, चार भेद ही जानना। प्रतिभेद दो और चार से, तथा भेद दो-तीन मानना ।। निवर्त्तना है भेद दोय से, निक्षेप होते चार से । संयोग के दो भेद साधी, निसर्ग तीन विचार से ।। ७ ।।