Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
View full book text
________________
अष्टक-समुच्चय [
.
[
८५
गत काल मेरा अनादि, इस संसार में परिभ्रमतां । उसे सहा मैंने प्रभो !, दुर्गति दुःख अनन्ततां ।। प्रतिकष्ट से जिनराज ! तेरा, प्राज शुभ दर्शन हुमा । मुझ दुःख-दोहग-कष्ट-संकट, रोग-संतापादि टला ।। ६ ।। पूर्व पुण्य संयोग से, अनुपम कल्पवृक्ष फला। मुझ नयनों में से प्राज, अमीय के मेह उठा ।। अहो ! जाने गृहाङ्गण में, कामधेनु चलकर पायी। और उसने भर दी रत्न, चिन्तामणि हेम थाली ।। ७ ।। माया प्रभो ! तेरे शरणे, अब भक्त की लाज कीजे । किये अनेक प्रपराध मैंने, ते सभी मुझ खमीजे ।। मिलती रहे भवोभव प्रभो! तुम चरणों की सेवा शुभ । तथा मिले अन्तिम संयम, मम प्रात्म पावे शिवसुख ।। ८ ।। तपगच्छनायक नेमि - लावण्य - दक्ष सूरिराज के। पट्टधर सुशीलसूरि ने, रचा 'प्रात्महित-अष्टक' यह ॥ विक्रमाब्द दोय सहस, सुड़तालीस ज्येष्ठ वदि सातमे । कानाना नगरे पार्श्व-प्रतिष्ठा-महोत्सवे जनहिते ।। ६ ।।