Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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महापुरुषों के विषय में महर्षि भर्तृहरि ने कहा है 'अलंकारः भुवः'। निस्सन्देह - वे धरती के अलंकार होते हैं । उनका समस्त जीवन लोक-कल्याण के लिए समर्पित होता है। ऐसी ही लोक-मंगल-विभूति जैनधर्म दिवाकर आचार्य श्री सुशील सूरि
जी हैं। उन्होंने अपना जीवन मानवीय मूल्यों को मानव समाज में प्रतिष्ठित करने * के लिए अपित किया है। पूज्य प्राचार्यश्री ने अपने उदात्त मिशन के क्रियान्वयन
हेतु पंचसूत्री कार्यक्रम बनाया है ।
* पंचसूत्री कार्यक्रम *
RNSEXSEXXXXXXXXXXXXX १. सप्त व्यसन-मुक्त समाज की रचना २. समाज की एकता
3. जिनमन्दिरों का निर्माण एवं जीर्णोद्धार ४. सत् साहित्य-सृजन
५. चरित्र-निर्माण ____ सात व्यसन हैं-मदिरापान, मांसाहार, शिकार, जुआ (बूत क्रीड़ा), * परस्त्रीगमन, वेश्यागमन, चोरी। व्यसन-मुक्त मानव समाज धरती पर स्वर्ग की • कल्पना को साकार करता है। समाज की एकता के लिए जाति, धर्म, सम्प्रदाय
आदि से ऊपर उठना आवश्यक है। सभी मनुष्य समान हैं, प्राणिमात्र अपनी • आत्मा के समान है
'आत्मवत् सर्वभूतेषु' यह भारतीय संस्कृति का महान् सन्देश है।
आचार्यश्री ने 'श्रीमहादेवस्तोत्र काव्य' में ईश्वर को शिव-शंकर, ब्रह्मा, विष्णु, ईश्वर, बुद्ध, अल्लाह आदि बताकर करुणा-निधान, विश्व-वात्सल्य-मूर्ति * वीतराग परमात्मा का गुणगान किया है। उन्होंने कहा है कि प्राणिमात्र के प्रति - प्रेम रखना ही धर्म है, प्रभु-सेवा है। उन्होंने कहा-'धर्म फूल है जो सुगन्ध और - सुन्दरता से सबको सम्मोहित करता है, वह काँटा नहीं जो चुभकर किसी को दुःख * पहँचाए। अतः मानव को चाहिए कि वह प्रेम के सूत्र में गुम्फित होकर जगत्। सुख का निर्माण करे।