Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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अष्टक-समुच्चय ]
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१
दुःखरूप इस निखिल विश्व का, करो त्याग हो पात्मोत्थान । होता है दुःखानुबन्ध ही, पापकर्ममय जब हो प्राण ॥ शुभ पुण्यों से मिलता उत्तम, जीवन में दुर्गति का नाश । पुण्यानुबन्धन कर्मोदय से, पाता जीवन मुक्ति प्रकाश ।। ६ ।। सांसारिक वैभव माया की, तृष्णा मृगमरीचिकाभास । त्यागी तीर्थकर वाणी यह, भौतिक सुख में दुःख का वास ॥ बन मिथ्यात्वी जीव मानता, राग-द्वष में स्नेह विधान । मोहमहाज्वर की व्याधि में, प्रात्म-तत्त्व का कुछ ना ज्ञान ।। ७ ।। सन्मार्गगामी प्रात्म तू, मित्र सम है इसलिए । विपरीत इसके है रिपु से, डिगना न पथ से तक जिये ।। शील समता संयमी बन, प्रात्मतत्त्व चिन्तवना । कहे महाज्ञानी नित्य यह, मुक्ति मन्दिर पहुँचना ।। ८ ।। निधि वेदाकाश नेत्र वर्षे विक्रमे लेटापुरे। स्थित चातुर्मास कार्तिक शुक्ल पंचमी भुगुवासरे ।। रविचन्द्र विजय प्रशिष्य की, विज्ञप्ति से प्रतिरम्य यह । किया आत्मचिन्तनाष्टक, जगहितार्थ सुशील सूरि यह ।। ६ ।।
॥ इति प्रात्मचिन्तनाष्टक समाप्त ॥