Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
[ ५॥३८
* कालस्य निरूपणम् *
卐मूलसूत्रम्
कालश्चेत्येके ॥५-३८ ॥
* सुबोधिका टीका * केऽपि प्राचार्याः कालोऽपि द्रव्यमिति उच्यन्ते । पूर्व वर्तनादि-उपकाराणि व्याचक्षितानि तानि उपकारकाभावे नैव व्याक्षितुम्समर्थाः ।
पदार्थानां परिणमने क्रमवर्तित्वस्य हेतुः । अतः कालोऽपि द्रव्यमिति व्याचक्षते ।। ५-३८ ॥
* सूत्रार्थ-कोई-कोई प्राचार्य काल को भी द्रव्य कहते हैं ।। ५-३८ ।।
क विवेचनामृत कितनेक प्राचार्य काल को भी द्रव्य तरीके मानते हैं। पहले इसी अध्याय के सूत्र “वर्तना परिणामः क्रियापरत्वापरत्वे च कालस्य" [५-२२] में काल के वर्तनादि पर्यायों का वर्णन करके आये हैं, किन्तु वहाँ द्रव्यत्व विधान नहीं है ।
द्रव्यत्व विधानविषयी तो प्रस्तुत सूत्र है। तथा उसके विवेचन में [धर्माधर्माकाशजीव पुद्गल] पाँच पदार्थों के द्रव्यत्व विषय समस्त की एक मान्यता होने से एक ही सूत्र से उनकी व्याख्या की गई है। तथा काल के द्रव्यत्व विषय में मतभेद होने से सूत्रकार यथानुक्रम पृथक् सूत्र से उसकी व्याख्या करते हैं।
सूत्रकार का कथन यह है कि, कई आचार्य काल को द्रव्य रूप में मानते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि, वास्तविक रूप से केवल स्वतन्त्र द्रव्य रूप सर्वसम्मत नहीं है ।
यहाँ सूत्रकार ने काल को पृथक् द्रव्य मानने वाले आचार्यों के मत का निराकरण नहीं किया, किन्तु काल में द्रव्य का लक्षण घटता नहीं होने से सूत्रकार को काल द्रव्यतरीके इष्ट नहीं है। विश्व-जगत् की सत्ता, विश्व-जगत् में होते हुए फेरफार, क्रम से कार्य की पूर्णता तथा छोटेबड़े का व्यवहार इत्यादि काल बिना नहीं घट सकते हैं। इसलिए ही वर्तना, परिणाम इत्यादि काल के उपकार हैं, इस अध्ययन को २२ वें सूत्र में कहा है। अर्थात् काल जैसी वस्तु विश्व-जगत् में विद्यमान है। कोई भी काल का निषेध नहीं कर सकते हैं। किन्तु काल द्रव्यरूप है कि गुणपर्याय रूप है ? इसी में मतभेद है। इसलिए इस सूत्र में निर्देश किया है ।। ५-३८ ।।