Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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३८ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
[ ६१६ * सूत्रार्थ-अल्प प्रारम्भ, अल्प परिग्रह तथा स्वभाव की कोमलता और सरलता से मनुष्य-प्रायुष्य का प्रास्रव होता है ।। ६-१८ ।।
ॐ विवेचनामृत अल्पारंभ, अल्पपरिग्रह, मृदुता तथा लघुता ये मनुष्यायु के बन्ध हेतु आस्रव हैं । (१) स्वभाव से ही भद्रिक= सरल परिणामी होना। (२) मृदुता-नम्रता, गुणीजनों का विनयभाव करना। (३) दीन-दुःखियों पर दयाभाव लाना।
(४) अन्य-दूसरों को सम्पत्ति देखकर मत्सरता नहीं लाना। तथा अल्पारम्भ अल्पपरिग्रह अर्थात्-अपनी अपनी अभिलाषा-इच्छाओं को संयमित रखना। ये मनुष्यायुष्य बन्ध के हेतु हैं ।। ६-१८ ।।
* नरकायुष्यादित्रयाणां समुदितास्रवः * 卐 मूलसूत्रम्
निःशील-व्रतत्वं च सर्वेषाम् ॥ ६-१६ ॥
* सुबोधिका टीका * स्वशीलाद् व्रतत्वाच्च च्युतः निःशीलवतं कथ्यते । नरक-तिर्यंच-मनुष्यायुष्याणां सर्वेषां बन्धहेतुरिति ।। ६-१६ ।।
* सूत्रार्थ-शीलरहित और व्रतरहितपने से सभी आयुष्यों का प्रास्रव होता है ।। ६-१६ ॥
विवेचनामृत ___निःशील और व्रतरहित होना सब आयुष्यों का बन्ध हेतु है। अर्थात्-शील और व्रत के परिणामों का प्रभाव नरक, तिथंच तथा मनुष्य इन तीनों आयुष्यों का प्रास्रव है। उपर्युक्त सूत्र १६-१७-१८ में उक्तायुषों के भिन्न-भिन्न बन्धहेतु बताए हैं ।
तथापि प्रस्तुत सूत्र में तीनों प्रायुषों का सामान्य बन्ध हेतु बताया गया है । (१) अहिंसा, सत्यादि पांच नियम हैं, वे व्रत कहलाते हैं ।