Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
View full book text
________________
६७ ] षष्ठोऽध्यायः
[ १७ होता है, तथा मन्दभावे जिनवाणी सुनने वाले को सामान्य पुण्य का बन्ध होता है। इसलिए तीव्रभाव तथा मंदभाव के भेद से कर्मबन्ध में भेद पड़ता है ।
* ज्ञात-अज्ञात भाव-ज्ञातभाव यानी जानकर इरादापूर्वक प्रास्रव की प्रवृत्ति । तथा अज्ञातभाव यानी अज्ञानता से इरादा सिवाय प्रास्रव की प्रवृत्ति ।
जैसे–शिकारी जानकर इरादापूर्वक निजबाण से मृग-हरिण को हनता है, जब अन्य स्तम्भ इत्यादि को बींधने के लिए इरादापूर्वक अपना बाण फेंकता है, किन्तु बाण किसी प्राणी को लगने से वह मृत्यु को प्राप्त होता है।
यहाँ प्रथम जीवहिंसा करता है, जब अन्य जीवहिंसा करता नहीं है, किन्तु उससे हिंसा हो जाती है, इसलिए यह भेद है। अतः दोनों के हिंसा के परिणाम में भेद है। परिणाम के भेद से कर्मबन्ध में भेद पड़ता है।
* वीर्य -वीर्यान्तराय कर्म के क्षयोपशमादिक से प्राप्त शक्ति । जैसे-जैसे वीर्य=शक्ति विशेष होती है वैसे-वैसे आत्मा के परिणाम विशेष तीव्र होते हैं। तथा जैसे-जैसे वीर्य =शक्ति कम-अल्प होती है वैसे-वैसे परिणाम विशेष मन्द होते हैं ।
तीव्र शक्ति वाले तथा मन्द शक्ति वाले के एक ही प्रकार की हिंसा की क्रिया करते हुए भी वीर्य के भेद के कारण परिणाम में भेद पड़ते हैं। इसलिए ही छठे संघयण वाला जीव सातवीं नरक में जाना पड़े, ऐसा पाए नहीं कर सकता है। जबकि प्रथम (अत्यन्त बल युक्त) संघयण वाला जीव-पात्मा ऐसा पाप कर सकता है।
जैसे हीन संघयण वाला जीव-प्रात्मा प्रबल पाप नहीं कर सकता, वैसे प्रबल पूण्य भी नहीं कर सकता। हीन संघयण वाला जीव-आत्मा चाहे कितना भी उत्कृष्ट धर्म करे तो भी वह चौथे माहेन्द्र देवलोक से ऊपर नहीं जा सकता है। वीर्य का आधार देह-शरीर के संघयण पर ही है। अतः ज्यों-ज्यों संघयण मजबूत होता है, त्यों-त्यों पुण्य व पाप भी अधिक होते हैं ।
कौनसे-कौनसे संघयण वाला जीव-पात्मा अधिक में अधिक कितना पुण्य-पाप कर सकता है, यह जानने के लिए कौनसे-कौनसे संघयण वाला जीव-प्रात्मा कौनसे-कौनसे देवलोक तक, तथा कौनसो-कौनसी नरक भूमि तक जाता है, यह जानना चाहिए
(१) प्रथम वज्रऋषभनाराच संघयण वाले जीव-आत्मा ऊपर मोक्ष तक तथा नीचे
- सातवीं तमस्तमःप्रभा नरक भूमि तक जा सकते हैं । द्वितीय ऋषभनाराच संघयण वाले जीव-आत्मा ऊपर बारहवें अच्युत देवलोक तक
तथा नीचे छठी तम:प्रभा नरक भूमि तक जा सकते हैं । (३) तृतीय नाराच संघयण वाले जीव-आत्मा ऊपर दसवें प्राणत देवलोक तक तथा
नीचे पाँचवीं धूमःप्रभा नरक भूमि तक जा सकते हैं।
(२)