Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
View full book text
________________
श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
[ ६।१३ कारण कठिन ऐसे दुःखादि संयोग प्राप्त होने पर भी क्रोध तथा सन्तापादि कषायों को प्राप्त नहीं होते हैं और कषाय बिना, आस्रव भी नहीं होता है।
द्वितीय कारण यह है कि-वास्तविक त्यागवृत्ति वालों की चित्तवृत्ति नित्य प्रसन्नचित्त रहती है। उनके कठोर व्रत, नियम परिपालन में भी प्रसन्नता ही रहती है। दुःख शोकादिक का प्रसंग कभी उपस्थित नहीं होता है। कदाचित् कर्मवशात् किसी प्रसंग में दुःखी हो जाए तो भी व्रतपालन करने में जिनकी अतिरुचि है, उनको ये दुःखरूप नहीं होते, किन्तु सुखरूप होते हैं । जैसे-कोई व्यक्ति व्याधि-रोगग्रस्त है। उसके देह-शरीर की डॉक्टर या वैद्य चीरफाड़ करता है,
और रोगी को दुःख का अनुभव भी होता है। इसके लिए वे निमित्त रूप हैं, तो भी करुणाजनक सद्वृत्ति के कारण ये पाप के भागी नहीं होते हैं। इसी तरह सांसारिक दुःख दूर करने के उपायों को प्रानन्द-प्रसन्नतापूर्वक अंगीकार करते हुए संयमी-त्यागी भी सवृत्ति के कारण पापबन्धक नहीं होते हैं।
* इस सूत्र का सारांश यह है कि-- दुःख असाता वेदनीय कर्म का प्रास्रव है। उसका अर्थ होता है कि, क्रोधादि कषाय के आवेश से दीनतापूर्वक उत्पन्न होता हुआ दुःख असातावेदनीयकर्म का प्रास्रव है। किन्तु प्रात्मशुद्धि के ध्येय से स्वेच्छापूर्वक स्वीकारने में आते हुए दु:ख के उसी प्रकार के कर्मों के उदय से स्वयं आया हुआ दुःख भी आत्मशुद्धि के ध्येय से समभाव से सहन करने पर असातावेदनीयकर्म का आस्रव नहीं है ।
अध्यात्मप्रेमी जीव आत्मशुद्धि के ध्येय से स्वेच्छा से तप आदि के दुःख सहन करते हैं। दुःख में क्रोधादि कषाय का प्रावेश नहीं होने से और मन की प्रसन्नता होने से उनको असातावेदनीय कर्म का बन्ध नहीं होता है, किन्तु अतिनिर्जरा होती है। अर्थात् पूर्व में बाँधे हुए अशुभ कर्म का क्षय होता है।
अध्यात्मप्रेमी जीवों को तप इत्यादि में होने वाला दुःख दुःखरूप नहीं लगता है ।
आध्यात्मिक मार्ग में कष्ट का विधान भावी सुख को लक्ष्य में रखकर करने में आया है ।। ६-१२॥
* सातावेदनीयकर्मणः बन्धहेतु * ॐ मूलसूत्रम्
भूत-व्रत्यनुकम्पा दानं सरागसंयमादियोगः क्षान्तिः शौचमिति सवेद्यस्य ॥ ६-१३ ॥
* सुबोधिका टीका * सर्वजीवानुकम्पा वा सर्वभूतानुकम्पा अगारिषु अनगारिषु च व्रतिषु अनुकम्पाविशेषः दानं सरागसंयमः संयमासंयमोऽकामनिर्जरा बालतपो योगः क्षान्ति शौचमिति