Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
View full book text
________________
हिन्दी पद्यानुवाद ]
पञ्चमोऽध्यायः
ॐ मूलसूत्रम्
असंख्येयाः प्रदेशाः धर्माधर्मयोः ॥ ५-७ ॥ जीवस्य ॥ ५-८ ॥ आकाशस्यानन्ताः ॥ ५-६ ॥ संख्येयाऽसंख्येयाश्च पुद्गलानाम् ॥ ५-१० ॥
नारणोः ॥ ५-११ ॥ * हिन्दी पद्यानुवाद
धर्म अधर्म जीवद्रव्य प्रदेश से असंख्य है। आकाश लोकालोकव्यापी प्रदेश से अनन्त है ।। पुद्गलों के भेद ये संख्य - असंख्य - अनन्त है ।
परमाणु तो है अप्रदेशी सूत्र से अभिव्यक्त है ॥ ३ ॥ 卐 मूलसूत्रम्
लोकाकाशेऽवगाहः ॥ ५-१२ ॥ धर्माधर्मयोः कृत्स्ने ॥ ५-१३ ॥ एकप्रदेशादिषु भाज्यः पुद्गलानाम् ॥ ५-१४ ॥ असंख्येयभागादिषु जीवानाम् ॥ ५-१५ ॥ प्रदेशसंहार-विसर्गाभ्यां-प्रदीपवत् ॥ ५-१६ ॥
गति-स्थित्युपग्रहौ धर्माऽधर्मयोरुपकारः ॥ ५-१७ ॥ * हिन्दी पद्यानुवाद
द्रव्य सारे हैं ऽवगाहित व्याप्त लोकाकाश में । पर धर्म एवं अधर्म द्रव्य पूर्ण लोकाकाश में । एक आदि प्रदेश में है पुद्गल प्रवगाहना । असंख्येय भागों में रही है जीव की प्रवगाहना ।। ४ ॥ प्रदेश का संकोच होता दीप सम विस्तार से । देहव्यापी जीव देशित यही निर्णय तत्त्व से ।। जीवादि के संचार में ही गतिसहायक धर्म है । और स्थिरता में सहायक द्रव्य वह अधर्म है ॥ ५ ॥