Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
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वास्तविक सूक्ष्मदृष्टि द्वारा जो विचारणा करने में आ जाय तो काल द्रव्य नहीं है, किन्तु द्रव्य के वर्तनादि पर्याय स्वरूप है। जीव इत्यादि द्रव्यों में होने वाले वर्तनादि पर्यायों में काल उपकारक होने से उसको पर्याय तथा पर्यायी के अभेद की विवक्षा से प्रौपचारिक यानी उपचार से द्रव्य कहने में आता है।
वर्तना काल का समय रूप पर्याय तो एक ही है। तथापि अतीत, अनागत समय पर्याय अनन्त हैं। इसलिए काल को अनन्त पर्याय वाला कहा है। * प्रश्न-पर्याय और पर्यायी (द्रव्य) के अभेद की विवक्षा से जो काल को द्रव्य कहने में
आ जाय तो वर्तनादि पर्याय जिस तरह अजीव के हैं, उसी तरह जीव के भी हैं । अर्थात-काल को जीव और अजीव उभय स्वरूप कहना चाहिए; जबकि आगम शास्त्रों में काल को अजीव स्वरूप कहने में आया है। उसका क्या
कारण ? * उत्तर-यद्यपि यह नैश्चयिक काल जीव और अजीव उभय स्वरूप है किन्तु जीव द्रव्य से अजीव द्रव्य की संख्या अनंत गुणी होने से अजीव द्रव्य की बहुलता का आश्रय ले काल को सामान्य से अजीव तरीके अोलखाने में आया है ।। ५-३६ ।।
* गुणस्य लक्षणम् * ॐ मूलसूत्रम्
द्रव्याश्रया निर्गुणाः गुणाः ॥ ५-४० ॥
* सुबोधिका टीका * एषामाश्रय इति द्रव्यम्, इति द्रव्याश्रयाः न एषां गुणाः सन्ति इति निर्गुणाः । प्रत्राश्रयशब्देनाधारो न ज्ञेयः परिणामीति ज्ञेयः । स्थित्यंशरूपद्रव्यपरिणामीति परिणाम विशेषकारणेभ्यः । द्रव्यं परिणमनं करोति अतः गुण-पर्यायौ परिणामश्च द्रव्यं परिणामी। गुणस्तु स्वयं निर्गुणः ।
बन्धे समाधिको पारिणामिको इति कस्तत्र परिणामः ? ।। ५-४० ।। * सूत्रार्थ-जो द्रव्य में रहते हैं और स्वयं निर्गुण हैं, उनको 'गुण' कहते हैं । अर्थात-जो द्रव्य के आश्रय में रहे और स्वयं निर्गुण हो वह गुण है ॥ ५-४० ।।
+ विवेचनामृत जो द्रव्य में सदा रहे और (स्वयं) गुणों से रहित हो वह 'गुण' है ।
द्रव्य के लक्षण और गुण का कथन इसी पाँचवें अध्ययन के सूत्र ३७ में आ गया है । इसलिए अब गुण का स्वरूप बताते हैं, जो नीचे प्रमाणे है