Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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पञ्चमोऽध्यायः
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जिसमें गुरण [ नित्य रहने वाले ज्ञानादि तथा स्पर्शादि धर्म ] और पर्याय [उत्पन्न होने वाला तथा विनाश पामनेवाला ज्ञानोपयोग इत्यादि एवं शुक्लरूपादि धर्म] होते हों, वह 'द्रव्य ' कहलाता है ।
५।३७
प्रत्येक द्रव्य अपने-अपने परिणामी स्वभाव के कारण निमित्त पाकर पृथक्-पृथक् यानी भिन्न-भिन्न रूप को प्राप्त करता है । अर्थात् विविध प्रकार के परिणाम प्राप्त करने की जो शक्ति है, उसी को 'गुण' कहते हैं तथा गुरणजन्य परिणाम को 'पर्याय' कहते हैं ।
उसमें गुरण कारण है तथा पर्याय कार्य है । प्रत्येक द्रव्य में शक्ति रूप से अनन्त गुरण रहते हैं । वे द्रव्य के आश्रयभूत अविभाज्य रूप हैं । प्रत्येक गुरण के पृथक् -भिन्न समय सम्प्राप्य कालिक पर्याय अनन्त हैं । द्रव्य और उसकी अंश रूप शक्ति उत्पन्न तथा विनष्ट नहीं होती है, इसलिए वह अनादिअनन्त है अर्थात् नित्य है । किन्तु पर्याय प्रतिक्षरण उत्पन्न और विनष्ट होने के कारण व्यक्तिश: सादि सान्त है, अर्थात् अनित्य है । एवं प्रवाह की अपेक्षा से वह भी अनादिग्रनन्त ( नित्य ) है । किसी भी कारणभूत एक शक्ति से द्रव्य में होने वाले त्रैकालिक पर्यायप्रवाह सजातीय कहलाते हैं ।
एवं द्रव्य में अनन्त शक्ति है । तद्जन्य पर्याय भी अनन्त हैं । वे एक द्रव्य में प्रति समय पृथक्-पृथक् भिन्न-भिन्न शक्ति द्वारा उत्पन्न होने वाले विजातीय पर्यायपेक्षा एक साथ प्रवाह रूप से अनन्त हैं । किन्तु एक समय में एक शक्तिजन्य सजातीय पर्याय एक ही होता है, अनेक हो सकते नहीं ।
जीव आत्मा और पुद्गल ये दो द्रव्य ऐसे हैं कि वे अपनी शक्ति द्वारा अनेक-अनेक रूपों में परिणत होते हैं । आत्मा चेतनादि अनन्त गुण और ज्ञान दर्शनादि अनेक उपयोगों वाला है । पुद्गल में रूपादि अनन्तगुरण तथा नील-पीतादि अनन्त पर्याय रहे हुए हैं । जीव- श्रात्मा चैतन्यादि शक्ति द्वारा उपयोग रूप में तथा पुद्गल रूप शक्ति द्वारा अनेक प्रकार और नीलपीतादि रूप में परिणत हुआ करता है । आत्मद्रव्य की चेतना शक्ति श्रात्मद्रव्य से तथा उसकी अन्य दूसरी शक्तियों से पृथक् भिन्न नहीं हो सकती है । इसी माफिक रूपत्वादि शक्ति पुद्गल द्रव्य से तथा तद्गत अन्य दूसरी शक्तियों से पृथक् भिन्न नहीं हो सकती है ।
ज्ञान, दर्शनादि भिन्न-भिन्न समयवर्त्ती विविध उपयोगी के त्रैकालिक प्रवाह का कारण एक चेतना शक्ति है । इस चेतनाशक्ति के द्वारा पर्याय प्रवाह से उपयोग रूप कार्य होता है । इसी माफिक पुद्गल द्रव्य में रूपत्व शक्ति कारणभूत तथा नील-पीतादि विविध वर्ण पर्याय प्रवाह उस शक्ति का कार्य है । आत्मद्रव्य में उपयोगात्मक पर्याय के प्रवाह के तुल्य सुख और दुःख वेदनात्मक पर्यायप्रवाह, प्रत्यात्मक पर्यायप्रवाह इत्यादि अनन्त पर्याय के प्रवाह एक साथ प्रवाहित होते हैं । उस कार्य को भूतपर्याय प्रवाहों की काररणभूत शक्ति भिन्न-भिन्न मानने से अनन्त शक्ति सिद्ध हो जाती है ।
इसी माफिक पुद्गल द्रव्य में भी रूपी पर्याय प्रवाह के सदृश गन्ध, रस तथा स्पर्श इत्यादि अनन्त पर्याय के प्रवाह अहर्निश प्रवाहित रहते हैं । प्रत्येक प्रवाह की कारणभूत शक्ति भिन्न-भिन्न मानने से पुद्गल में भी रूप शक्ति के तुल्य गन्ध, रस तथा स्पर्शादिक अनन्त शक्तियाँ सिद्ध हो जाती हैं ।