Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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पञ्चमोऽध्यायः
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एक अंश अधिक और उत्कृष्ट से एक अंश न्यून मध्यम संख्या कहलाती है। जघन्य की अपेक्षा उत्कृष्ट अनन्तगुणाधिक है। इसलिए स्निग्धत्व और रूक्षत्व परिणाम के तारतम्य के अनन्त भेद होते हैं।
* प्रश्न-पूर्वोक्त परमाणु तथा स्कन्धों के जो स्पर्श, रसादि गुण हैं वे व्यवस्थित रूप से रहते हैं या अव्यवस्थित रूप से ?
उत्तर-वे परिणामी होने से अव्यवस्थित रहते हैं, तथापि बध्यमान अवस्था में किसी भी गुण के साथ किस अवस्था में परिणमन होते हैं, उसको आगे के सूत्र द्वारा बताते हैं ।। ३३-३५ ॥
* परिणाम-स्वरूपम् *
卐 मूलसूत्रम्
बन्धे समाधिको पारिणामिकौ ॥५-३६ ॥
* सुबोधिका टीका * गुणसाम्ये तु सदृशानां बन्धप्रतिषेधः । इमौ तु विसदृशावेको द्विगुण स्निग्धो अन्यो द्विगुणरुक्षः स्नेहरुक्षयोश्च भिन्नजातीयत्वात् नास्ति सादृश्यम् ।
अतएव बन्धे सति समगुणस्य समगुणः परिणामको भवति । अधिकगुणो हीनस्येति ।। ५-३६ ।।
* सूत्रार्थ-बन्ध होने पर समान गुण वाला अपने समान गुणवाले का परिणामक हुमा करता है तथा अधिक गुणवाला अपने से हीन गुणवाले का परिणामक हुआ करता है। अर्थात्-बन्ध के समय समगुण का समगुण के साथ और हीनगुण अधिक गुण के साथ परिणमन करने वाला होता है ।। ५-३६ ॥
ॐ विवेचनामृत पुद्गलों में बन्ध होने के बाद सम और अधिक गुण क्रमशः सम तथा हीन गुण को अपने रूप में परिणमाते हैं।
बन्ध के विधि और निषेध का स्वरूप पूर्व के सूत्र में कह पाये हैं। वहाँ पर सदश और असदृश परमाणुओं का परस्पर बन्ध होता है। उनमें कौनसे गुण के परमाणु किस गुण में परिणत होते हैं, उसका इस प्रस्तुत सूत्र द्वारा वर्णन करते हैं ।
जब समान गुण रुक्ष का और स्निग्ध का बन्ध होता है तब कभी रुक्ष गुण स्निग्धगुण को रुक्षरूप में परिणमाता है-रुक्ष रूप में करता है तो कभी स्निग्ध गुण रुक्ष को स्निग्ध रूप में परिणमाता है।