Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
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५॥३३
(२) धल, धान्य के फोंतरे और रेती। इन सबमें रूक्षता गुण होते हुए भी सर्व में समान नहीं है। जो घल में रूक्षता है, उससे अधिक रूक्षता घान्य के फोंतरे में है। उससे भी अधिक रूक्षता रेती में है। अर्थात् - इन तीनों में रूक्षता उत्तरोत्तर अधिक-अधिक है।
उक्त दोनों उदाहरण-दृष्टान्त से जान सकते हैं कि सर्वपुद्गलों में स्निग्धता और रूक्षता गुण न्यूनाधिक अर्थात् कम-ज्यादा भी होते हैं। यहाँ पर समस्त पुद्गलों में स्निग्ध और रूक्ष गुण समान भी होते हैं तथा न्यूनाधिक अर्थात् कम-ज्यादा भी होते हैं; यही विचारणा करने में पाई है।
अब मूलसूत्र के अर्थ को विशेष रूप में समझने के लिए कहा है कि -जिस गुण का [स्निग्ध वा रूक्ष का] श्री केवली भगवन्त की दृष्टि से भी जिसके दो विभाग न हो सके, ऐसे सबसे छोटे भाग की कल्पना अपन करें। गुण का ऐसा भाग जिस पुद्गल में हो, वह एक गुण पुद्गल कहा जाता है। इस तरह दो भाग जिसमें हों वे द्विगुण पुद्गल तथा तोन भाग जिसमें हों वे त्रिगुण पुद्गल कहे जाते हैं। ऐसे आगे बढ़ते चतुर्गुण, पञ्चगुण, संख्यातगुण, असंख्यातगुण, यावत् अनन्तगुण पुद्गल होते हैं।
इसमें सबसे कम गुण एकगुणपुद्गल में होता है। द्विगुण पुद्गल में उससे अधिक होता है। त्रिगुण पुदगल में उससे अधिक होता है। चतुर्गुण पुदगल में उससे भी अधिक होता है, इस तरह बढ़ते-बढ़ते अनन्तगुणपुद्गल में सबसे अधिक गुण होते हैं ।
___ इस तरह गुण की तरतमता की दृष्टि से पुद्गलों में अनेक भेद पड़ते हैं। इन सभी भेदों को तीन भेदों में समावेश कर सकते हैं-(१) जघन्य गुण, (२) मध्यम गुण, और (३) उत्कृष्ट गुण।
उसमें सबसे कम गुण जिस पुद्गल में हो वह 'जघन्य गुण' वाला कहा जाता है। तथा जिस पुद्गल में सबसे अधिक गुण होते हैं वह 'उत्कृष्ट गुण' वाला कहा जाता है ।
जघन्य और उत्कृष्ट को छोड़कर शेष समस्त पुद्गलों के गुण 'मध्यम गुण' कहे जाते हैं ।
जघन्यगुणपुद्गल में और एकगुणपुद्गल में सबसे अधिक न्यूनगुण होता है। और ये दोनों समान ही होते हैं।
प्रस्तुत सूत्र में जघन्य [ =एक गुण ] पुद्गल में परस्पर बन्ध का निषेध कहने में आया है।
इसलिए जघन्यगुण स्निग्ध पुद्गल का जघन्य गुण रूक्ष वा जघन्यगुण स्निग्ध पुद्गल के साथ बन्ध नहीं होता है।
उसी प्रमाणे जघन्यगुण रूक्ष पुद्गल का जघन्यगुण स्निग्ध वा जघन्यगुण रूक्ष पुद्गल के साथ बन्ध नहीं होता है ।। ५-३३ ॥