Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
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धर्मास्तिका आदि के स्कन्ध आदि
भेद बुद्धि की कल्पना से भिन्न-भिन्न अपेक्षा से एक ही द्रव्य के हैं । उन भेदों को मूलद्रव्य से कभी पृथक् - भिन्न नहीं कर सकते हैं । जीव द्रव्य अनेक व्यक्तिरूप अनन्त हैं उसी प्रमाण पुद्गल द्रव्य भी अनन्त हैं ।
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विशेष - इन तीनद्रव्यों में एक द्रव्यत्व का साधर्म्य है । संख्या की बाबत इनका जीव और पुद्गलों के साथ वैधर्म्य है । जीव और पुद्गल में अनेक द्रव्यत्व का साधर्म्य है । धर्म, अधर्म और आकाश के साथ अनेकत्व का वैधर्म्य है ।। ५-५ ।।
* श्राकाशादिद्रव्येषु निष्क्रियता
5 मूलसूत्रम्
निष्क्रियाणि च ॥ ५-६ ॥
* सुबोधिका टीका *
श्रा आकाशादेव धर्मादीनि निष्क्रियाणि भवन्ति । क्रियाशीलाः क्रियेति गतिकर्माह ।
पुद्गल - जीवास्तु
क्रियापि द्विविधा |
परिणामलक्षणा परिस्पन्दलक्षणेति ।
अस्ति भवति क्रिये
वस्तुनः परिणमनमात्रं दर्शयतः । क्षेत्रात् क्षेत्रपर्यन्तवस्तुनयनमाकारान्तरकरणं वा
परिस्पन्दलक्षरणा ।
जीवपुद्गलाः क्रियावन्ताः गतिमन्ताश्च । एषामाकाररूपाणां परिणमनं भवत्येव । धर्मादिकानामाकाराणि श्रनादिकालतः अनन्तकाल पर्यन्तं समानानि । अर्थात् जीवपुद्गलवत् धर्माधर्माकाशद्रव्याणि न तु श्राकारान्तरयुक्तानि न च क्षेत्रान्तरगमनयोग्यानि भवन्ति ।
अन्यच्च प्रदेशावयवबहुत्वं कायसंज्ञमिति शङ्कयते । प्रदेशावयवनियमावधारणा ।
क एषः धर्मादीनां
श्रत्रोच्यते - सर्वेषां प्रदेशाः भवन्ति श्रन्यत्र परमाणोः । अवयवास्तु स्कन्धानामेव । यत् “अरणवः स्कन्धाश्च । सङ्घातभेदेभ्यः उद्भवन्ति " ।। ५-६ ।।
* सूत्रार्थ - उक्त तीनों ही द्रव्य निष्क्रिय हैं । अर्थात् " धर्माधर्माकाश" तीनों द्रव्य निष्क्रिय हैं । किन्तु पुद्गल और जीव ये दोनों क्रियावान हैं ।। ५-६ ।।
विवेचनामृत 5
आकाशादि द्रव्यों में निष्क्रियता अर्थात् ये द्रव्य निष्क्रिय क्रियारहित हैं । यहाँ पर सामान्यक्रिया का निषेध नहीं है, किन्तु गतिरूप विशेषक्रिया का निषेध है ।