Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
[ ५२० प्रदेशः शरीरयोग्यानि पुद्गल - द्रव्याणि गृह्णाति । अन्यच्च त्वगीन्द्रः ग्रहणं प्रक्षेपाहारः ॥ ५-२० ॥
* सूत्रार्थ-सुख तथा दुःख, जीवित और मरण में निमित्त बनना भी पुद्गल द्रव्य का ही उपकार-कार्य है ।। ५-२० ।।
5 विवेचनामृत संसार में कोई भी पदार्थ इष्ट ही हो या अनिष्ट ही हो ऐसा नहीं है। सुख में निमित्त बनना, दुःख एवं जीवित और मरण में निमित्त बनना यह सब पुद्गल का उपकार है। एक पदार्थ किसी को इष्ट होता है। कालान्तर में वही अनिष्ट भी हो सकता है। इष्ट वह है-जो राग से अभिभूत है। द्वष से विषयीभूत होता है, वह अनिष्ट होता है ।
भाषा का-शब्द का ज्ञान श्रोत्रेन्द्रिय द्वारा होता है। भाषा रसनेन्द्रिय आदि की सहायता से उत्पन्न होती है, तथा श्रोत्रेन्द्रिय की सहायता से जान सकते हैं । .प्रश्न-ऐसा पूर्व में कहा है, तो प्रश्न यह होता है कि
एक बार शब्द सुनने के बाद वही शब्द फिर क्यों नहीं सुन पाते हैं ? उत्तर - जैसे एक बार देखी हुई बिजली की चमक (उसके पुद्गल चारों तरफ बिखर जाने से) दूसरी बार देखने में नहीं आती है, वैसे ही एक बार सुने हुए शब्द (उसके पुद्गल चारों तरफ बिखर जाने से) दूसरी बार नहीं सुन पाते हैं। * प्रश्न -ग्रामोफोन के रेकर्ड में ये ही शब्द बारम्बार सुनने में आते हैं, उसका क्या
कारण है? उत्तर-ग्रामोफोन के रेकर्ड में शब्द रूप पुद्गल संस्कारित करने में आते हैं। संस्कारित किये हए शब्द अपन सब बारम्बार सुन सकते हैं। जैसे बिजली का फोटो लेने में आये तो बिजली भी बारम्बार देखी जा सकती है। * प्रश्न-तो फिर प्रश्न होगा कि भाषा यानी शब्द जो पुद्गल द्रव्य है तो उन्हें देह-शरीर
की भाँति नेत्र से क्यों नहीं देख सकते ? उत्तर-शब्द के पुद्गल अत्यन्त सूक्ष्म होने से उन्हें नयनों से नहीं देखा जा सकता। कारण कि शब्द केवल श्रोत्रेन्द्रिय से ही ग्राह्य बनते हैं। * प्रश्न -भाषा आँखों से नहीं देखी जा सकती है, इसलिए भाषा-शब्द को अरूपी मानने
में क्या बाधा है ? उत्तर-भाषा-शब्द को अरूपी मानने में अनेक प्रकार के विरोध उत्पन्न होते हैं, इसलिए भाषा-शब्द को प्ररूपी नहीं मानना चाहिए।