Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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५।२६ ]
पञ्चमोऽध्यायः
[ ४७
* स्कन्धस्योत्पत्तिकारणानि * . ॐ मूलसूत्रम्
संघातभेदेभ्य उत्पद्यन्ते ॥५-२६ ॥
* सुबोधिका टीका * स्कन्धाः त्रिभ्यः कारणेभ्यः उद्भवन्ति, संघाताद्, भेदात्, संघातभेदात् द्विप्रदेशादयः स्कन्धानामुत्पत्तिः जायते । तद्यथा-द्वयोः परमाण्वोः संघाताद् द्विप्रदेशः द्विप्रदेशस्याणोश्च संघातात् त्रिप्रदेशः एवं संख्येयानामसंख्येयानां च प्रदेशानां संघातात् तावत् प्रदेशाः । एषामेवभेदात् द्विप्रदेशपर्यन्ताः। एत एव च संघातभेदाभ्यां एकसामयिकाभ्यां द्विप्रदेशादयः स्कन्धा उद्भवन्ति, अन्यसंघातेन अन्यतो भेदेन च ॥ ५-२६ ।।
* सूत्रार्थ-स्कन्धों की उत्पत्ति संघात, भेद और संघातभेद से होती है । अर्थात्-संघात से, भेद से तथा संघात भेद से स्कन्ध उत्पन्न होते हैं ।। ५-२६ ।।
卐 विवेचनामृत ॥ संघात, भेद और संघातभेद इन तीन कारणों में से किसी भी एक कारण से स्कन्ध की उत्पत्ति होती है। इन तीन कारणों से स्कन्ध की उत्पत्ति कैसे होती है ? इसका दिग्दर्शन नीचे प्रमाणे है
स्कन्ध अर्थात् अवयवी द्रव्य की उत्पत्ति तीन प्रकार से होती है। उनमें (१) पहला जो स्कन्ध एकत्व रूप परिणति से उत्पन्न होता है उसको संघात कहते हैं। जैसे-द्विपरमाणु सम्मिलित होकर के स्कन्धपने को प्राप्त होते हैं एवं तीन, चार, यावत् संख्यात, असंख्यात, अनन्त और
नन्त प्रण सम्मिलित होकर के स्कन्ध रूप में परिणत होते हैं, वह 'संघातजन्य स्कन्ध' है।
(२) जो स्कन्ध किसी एक वस्तु-पदार्थ के खण्डरूप होता है उसे भेद कहते हैं। जैसेकिसी बड़ी वस्तु या पदार्थ के टूट जाने से उसके छोटे-छोटे टुकड़े हो जाते हैं, वे 'भेदस्कन्ध' कहलाते हैं।
(३) उपर्यक्त भेद और संघात दोनों से उत्पन्न होने वाला स्कन्ध है। जैसे किसी वस्तपदार्थ के टूटे हुए टुकड़े के साथ अन्य द्रव्य सम्मिलित होकर के उसी समय नूतन-नवीन स्कन्ध बनता है, वह भेदसंघातजन्य स्कन्ध कहलाता है ।
उपर्युक्त स्कन्ध द्विप्रदेशी से यावत् अनन्तानन्तप्रदेशी पर्यन्त होते हैं। वे ही (१) संघात, (२) भेद और (३) संघातभेद कहलाते हैं ।
उक्त कथन का सारांश यह है कि