Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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५।२७ ] पञ्चमोऽध्यायः
[ ४६ * परमाणोः उत्पत्तिः * ॐ मूलसूत्रम्
भेदावणुः ॥५-२७॥
* सुबोधिका टोका * स्कन्धोत्पत्तिभ्यः यानि त्रीणि कारणानि निर्दिष्टानि तेषु परमाणत्पत्तिः भेदादेव न तु संघातात् । पूर्व परमाणुः कारणरूपेणोक्तः किन्तु द्रव्यास्तिकनयेनैवेतद् । पर्याय नयापेक्षया तु कार्यरूपमेव भवति । यत् तस्य द्वयणकादिकः अपि उत्पत्तिः प्रतः पूर्वापरेण हेतुना नैव विरोधः। संघातभेदेभ्यः उत्पद्यन्ते। अनेन सूत्रेण त्रीणि कारणानि निर्दिष्टानि, किन्तु स्कन्धस्य द्वौ प्रकारौ। चाक्षुषाचाक्षुषो। द्वयोः स्कन्धप्रकारयोः कारणता साम्यं वा असाम्यं तदुच्यते ।। ५-२७ ।।
* सूत्रार्थ-परमाणु की उत्पत्ति भेद से ही होती है। भेद से ही अर्थात् वस्तु के खण्ड से अणु की उत्पत्ति है ।। ५-२७ ।।
विवेचनामृत परमाणु स्कन्ध के भेद से ही उत्पन्न होता है। कारण कि, परमाणु पुद्गल का अन्तिम अंश है। संघात होते ही वह अन्तिम अंश तरीके मिट कर स्कन्ध रूप में बनता है ।
अणु की उत्पत्ति संघात से होती ही नहीं। इसकी संघात भेद से भी उत्पत्ति नहीं होती। जब स्कन्ध में से परमाणु पृथक् निकलता है तभी परमाणु की उत्पत्ति होती है ।
परमाणु के लिए जो यह उपर्युक्त सूत्र "भेदादणुः" कहा है, वह विस्खलित अवस्था अर्थात् स्कन्ध के अवयव में समूह रूप से रहे हुए या उससे निकलकर पृथग् हुए परमाणु अवस्था विषयी हैं। विस्खलित अवस्था स्कन्ध भेद से ही उत्पन्न होती है। इसलिए इसी अभिप्राय से "भेदादणुः" यह सूत्र कहा है। किन्तु विशुद्ध परमाणु की अपेक्षा नहीं है, पर्याय भेद अवस्थाजन्य है।
वास्तविकता में परमाणु अन्य किसी द्रव्य का कार्य नहीं है। तथा न अन्य द्रव्य के संघात से सम्भव है, किन्तु वह स्वाभाविक स्वतन्त्र अनादिकालीन नित्य द्रव्य है।
* प्रश्न -परमाणु नित्य है और वह कारण रूप ही है, कार्य रूप नहीं है। इस तरह से कहा हुआ है, परन्तु यहाँ तो भेद से अणु उत्पन्न होता है, ऐसा कहा है, तो फिर उसका अर्थ यह हुआ कि परमाणु नित्य है, इतना ही नहीं किन्तु कार्यरूप भी है ?
उत्तर-सर्वज्ञविभुभाषित श्री जैनदर्शन कभी किसी काल में वस्तु-पदार्थ को एकान्त रूप से नित्य या अनित्य मानता ही नहीं। वह प्रत्येक वस्तु-पदार्थ को अपेक्षाभेद से नित्य और अपेक्षाभेद से अनित्य उभयस्वरूप मानता है।