Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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भीतस्वाधिषमसूत्रे
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(१) संघात-दो अणुषों के संघात से अर्थात् परस्पर जोड़ने से द्वयणुक स्कन्ध उत्पन्न होता है। दो अणुओं में एक अणु जोड़ने से व्यणुकस्कन्ध उत्पन्न होता है। तीन अणुओं में एक अणु जोड़ने से चतुरणुकस्कन्ध उत्पन्न होता है। इस तरह संख्यात, असंख्यात और अनन्त अणु के संघात से क्रमश: संख्याताणुक, असंख्याताणुक और अनंताणुक स्कन्ध उत्पन्न होते हैं।
यहाँ पर क्रमशः एक-एक अणु जुड़े ऐसा नियम नहीं है। कारण कि द्वयणुक स्कन्ध में एक साथ दो आदि अणु जुड़े तो भी व्यणुक स्कन्ध बने बिना भी सीधे चतुरणुक आदि स्कन्ध उत्पन्न होते हैं। उसी तरह पृथक-पृथक् तीन-चार आदि भी परमाणु एक साथ जुड़ें तो भी द्वयणुक बने बिना सीधे ही त्र्यणुक, चतुरणुक प्रादि स्कन्ध उत्पन्न होते हैं। कभी-कभी संख्यात परमाणु एक साथ में जुड़ जाने से द्वयणुकादि स्कन्ध बने बिना भी संख्याताणुक स्कन्ध बन जाता है। इस तरह असंख्याताणुक स्कन्ध और अनन्ताणुक स्कन्ध के लिए भी अवश्य जानना।
(२) भेद-अनन्ताणक स्कन्ध में से एक अण छट जाय तो एक अण न्यून अनन्ताणक स्कन्ध बनता है तथा दो परमाणु छुट जाँय तो दो परमाणु न्यून अनन्ताणुक स्कन्ध बनता है। इस तरह परमाणु छूटे पड़ते-पड़ते अनन्ताणक स्कन्ध असंख्याताणुक बन जाय तो इस असंख्याताणुक स्कन्ध की उत्पत्ति भेद से हुई, ऐसा कहा जाता है। असंख्याताणुक स्कन्ध में से ऊपर प्रमाणे परमाणु छूटे पड़ते-पड़ते संख्याताणुक बन जाय तो इस संख्याताणुक स्कन्ध की उत्पत्ति भेद से हुई, कहा जायेगा। संख्याताणुक स्कन्ध में से भी एक दो इत्यादि परमाणु छटे पड़ते-पड़ते यावत् मात्र दो ही परमाणु रहें तो, वह द्वयणुक स्कन्ध बन जाता है। जिस तरह संघात में एक साथ में एक-एक अणु ही जोड़ा जाय ऐसा नियम नहीं है, वैसे ही भेद में भी एक अणु ही छूटे, ऐसा भी नियम नहीं है।
अनन्ताणुक आदि स्कन्धों में से कई बार एक, कई बार दो, कई बार तीन, इस प्रकार यावत् कई बार एक साथ में मात्र दो अणुओं को छोड़कर सर्व ही अणु छूटे पड़ जॉय, तो वह स्कन्ध द्वयणुक बन जाता है।
(३) संघातभेद-एक ही समय में पृथक् होना और संयुक्त होना। अर्थात्-स्कन्ध में से एक दो इत्यादि परमाणु छूटे पड़ें तथा उसी समय में अन्य एक, दो इत्यादि परमाणु मिल भी जाँय, तो ऐसे स्कन्ध की उत्पत्ति संघात भेद से होती है। जैसे–चतुरणुक स्कन्ध में से एक परमाणु छूटा पड़ा और उसी समय में दो परमाणु आकर जुड़े तो यह चतुरणुक स्कन्ध, पंचाणुक यानी पाँच अणुवाला स्कन्ध बना। यहाँ पर पंचाणुक स्कन्ध की उत्पत्ति संघातभेद से हुई ।
इस तरह चतुरणुक स्कन्ध में एक परमाणु जुड़ा और उसी समय में उसमें से दो परमाणु छुटे पड़ गए तो यहाँ व्यणुक स्कन्ध की उत्पत्ति संघात भेद से हुई ।
आम स्कन्ध में अमुक परमाणु जुड़े और उसी समय में उसमें से जितने जुड़े उतने ही न्यूनाधिक अणु छुटे पड़ जाए तो नूतन जो स्कन्ध बने उनकी उत्पत्ति संघात, भेद से ही होती है । ऐसा समझना चाहिए ।। ५-२६ ।।