Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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पञ्चमोऽध्यायः
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भेद तथा संघात उभय से उत्पन्न हुए स्कन्ध ही अर्थात् उन्हें चक्षु से देख सकते हैं ।
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वर्तमान सूत्र द्वारा सिद्ध करते हैं कि अचाक्षुष स्कन्ध भी हैं । वे निमित्त लेकर चक्षु ग्राह्य बन जाते हैं । पुद्गल विविध परिणामी होते हुए भी यहाँ मुख्यपने दो भेद प्रतिपाद्यरूप होने से उन्हीं का कथन करते हैं
( १ ) अचाक्षुष यानी चक्षु इन्द्रिय अग्राह्य ।
तथा (२) चाक्षुष यानी चक्षु इन्द्रिय ग्राह्य । प्रथमावस्था के पुद्गल स्कन्ध प्रचाक्षुष हैं, किन्तु वे निमित्तवश सूक्ष्मत्व परिणाम का परित्याग कर बादर (स्थूल) परिणाम विशिष्टत्व द्वारा चक्षुग्राही बन जाते हैं। इसके लिए भेद और संघात दोनों अपेक्षाएँ युक्त हैं । जब स्कन्ध सूक्ष्मत्व परिणाम का परित्याग करके बादर परिणाम विषयी होता है, तब उस समय कितनेक नूतन परमाणु स्कन्ध में अवश्य सम्मिलित होते हैं एवं पूर्ववर्ती कितने ही अणु उससे पृथग् भी होते हैं । सूक्ष्म परिणाम की निवृत्ति तथा बादर परिणाम की उत्पत्ति केवल संघात प्रणुत्रों के सम्मिलन मात्र से या भेद-खण्ड मात्र से नहीं है । किन्तु जब तक स्कन्ध सूक्ष्मभाववर्ती है, उसमें कितने ही अधिक अणु सम्मिलित क्यों न हों, वह चक्षुग्राह्य नहीं हो सकता है । स्कन्ध जब सूक्ष्मत्व भाव को छोड़ करके बादर (स्थूल) स्वभाव वाला होता है, उस समय चाहे वह अधिकाधिक अणुत्रों से न्यून अणुवाला भी हो तो चक्षुग्राह्य होता है ।
बादरत्व परिणाम के बिना स्कन्ध चक्षुग्राह्य नहीं हो सकता है । इसलिए चाक्षुष स्कन्ध Satara र्वक संघात तथा भेद की ही आवश्यकता रहती है ।
उक्त कथन का सारांश यह है कि — प्रत्यन्त स्थूल परिणाम वाले स्कन्धों को ही नेत्र-नयनों से देख सकते हैं । वे स्कन्ध केवल भेद या केवल संघात से उत्पन्न नहीं होते हैं, किन्तु भेद और संघात दोनों से निष्पन्न होते हैं ।
भेद-संघात से उत्पन्न हुए समस्त स्कन्धों को देख सकते हैं, ऐसा नियम नहीं है । किन्तु जो स्कन्ध देखे जा सकते हैं, वे स्कन्ध भेद-संघात से ही उत्पन्न होते हैं, ऐसा नियम है ।
यहाँ चक्षु से ग्राह्य बनते हैं, यह उपलक्षण होने से पाँचों इन्द्रियों से ग्राह्य बनते हैं, ऐसा समझना चाहिए । अर्थात् भेद-संघात से उत्पन्न हुए स्कन्ध इन्द्रियग्राह्य बनते हैं ।
. भेद शब्द के दो अर्थ हैं
(१) स्कन्ध के टुकड़े अर्थात् खण्ड हो के अणुत्रों का पृथक् होना । तथा (२) पूर्व परिणाम की निवृत्ति और उत्तर परिणाम की उत्पत्ति ।
किन्तु अचाक्षुष स्कन्ध से चाक्षुष स्कन्ध बनने के लिए उपर्युक्त दोनों भेदों (परिणाम भेदसंघात ) की आवश्यकता रहती है ।