Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
View full book text
________________
५।२४
]
पञ्चमोऽध्यायः
[
३६
श्रीतत्त्वार्थसारे-“मसूराम्बुपृषत् सूचोकलापध्वजसंनिभाः, धराप्तेजो मरुत् कायाः नानाकारास्तरुत्रसाः ।" षट्संस्थानानां लक्षणम्
तुल्लं, वित्थडबहुलं, उस्सेहबहुं च मडहकोठं च ।
हिछिल्लकायमडह, सव्वत्था - संठियं हुंडं ॥ किमर्थं शब्दादीनां स्पर्शादीनाञ्च पृथक् सूत्रस्य कथनम् ? अत्रोच्यते-स्पर्शादयः परमाणुषु स्कन्धेषु च परिणामजा एव भवन्ति । शब्दादयस्तु स्कन्धेष्वेव भवन्त्यनेकनिमित्ताश्चेत्यतः पृथक्करणम् । ते एते पुद्गलाः समामतो द्विविधा भवन्ति ।। ५-२४ ।।
* सूत्रार्थ-शब्द, बन्ध, सौम्य, स्थौल्य, संस्थान, भेद, तम, छाया, पातप और उद्योत ये दस पुद्गल द्रव्य के धर्म हैं ।। ५-२४ ।।
विवेचनामृत है पुद्गल-शब्द, बन्ध, सूक्ष्मता, स्थूलता, संस्थान, भेद, अन्धकार, छाया, पातप और उद्योतवाले भी हैं।
अर्थात् शब्द आदि पुद्गल के परिणाम हैं। जैसे वैशेषिक तथा नैयायिकादि दर्शन वाले शब्द को गुणरूप मानते हैं, वैसा मन्तव्य श्रीजैनदर्शन का नहीं है। जैनदर्शन तो शब्द को भाषावर्गणा के पुद्गलों का एक परिणाम विशिष्ट मानता है। वे निमित्तभिन्नता से अनेक प्रकार के होते हैं।
आत्म-प्रयत्न द्वारा उत्पन्न होने वाले शब्द को 'प्रयोगज' कहते हैं तथा जो स्वतः प्रयत्न बिना के शब्द हैं, उसे 'विस्रसा' कहते हैं। जैसे-बादलों की गर्जना।
* विशेष-शब्द प्रादि पुद्गल के परिणामों के सम्बन्ध में विशेष रूप में युक्तिपूर्वक नीचे प्रमाणे कहा है(१) बजते हुए ढोल पर पैसा पड़े तो वह आवाज करने के बाद दूर फेंक दिया जाता है । (२) बुलन्द आवाज–जोरदार शब्द कर्णेन्द्रिय-कान से टकरावे तो कान फूट जाय अथवा बहरा
हो जाय । ------- जिस तरह पत्थर आदि से पर्वतादि का प्रतिघात होता है, उसी तरह शब्द का भी कूपादि
में प्रतिघात होता है तथा उसकी प्रतिध्वनि होती है। (४) शब्द, वायु द्वारा तृण-घास की तरह दूर-दूर ले जाया जाता है । (५) शब्द-प्रदीप के प्रकाश की भाँति सर्वत्र चारों तरफ फैलता है।