Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
View full book text
________________
५।२४ ] पञ्चमोऽध्यायः
[ ४३ (६) भेद-एकत्वरूप स्थित पुद्गलों के जो विश्लेष यानी विभाग हैं, उन्हीं को 'भेद' कहते हैं। अर्थात् -एक वस्तु-पदार्थ के भाग पड़ना सो 'भेद' है ।
___ इसके पाँच प्रकार हैं, जिनके नाम नीचे प्रमाणे हैं-(१) प्रौत्कारिक, (२) चौणिक, (३) खण्ड, (४) प्रतर और (५) अनुतट । * काष्ठादि यानी लकड़ी आदि को आरादिक से चीरना-काटना, 'पौत्कारिक भेद' कहा जाता है । * वस्तु-पदार्थ को पूर्ण करके महीन करना। अर्थात्-गेहूँ आदि का दलनादिक से होता हुआ
भेद, वह 'चौणिक भेद' कहा जाता है। जैसे दाल, आटा इत्यादि । * काष्ठ-लकड़ी आदि के खण्ड-टुकड़े करना, सो 'खण्ड भेद' कहा जाता है । * अभ्रक-भोडल आदि के परत पड़ल-पड़ 'प्रतर भेद' कहे जाते हैं । * बाँस, शेरड़ी, छाल, चामड़ी आदि को छेदने से होने वाला भेद 'अनुतट भेद' कहा जाता है। यह अनुत्तदवलकल विशेष नाम से भी कहा जाता है ।
(७) तम-अन्धकार को कहते हैं जो प्रकाश का विरोधी भाव है। यह अन्धकार के काले रंग में परिणमित पुद्गलों का समूह है, प्रकाश के अभाव रूप है। कारण कि उससे दृष्टि का प्रतिबन्ध होता है। जैसे एक वस्तु-पदार्थ से अन्य वस्तु ढक दी जावे तो अन्य वस्तु नहीं दिखाई देतो है वैसे ही यहाँ भी तिमिर-अन्धकार वस्तुओं को ढक देता है। जिससे वस्तु नेत्र-अाँख के सामने होते हुए भी दिखाई नहीं देती । जब अन्धकार पुद्गल स्वरूप हो तभी उससे दृष्टि का प्रतिबन्ध हो सकता है।
अन्धकार के पुद्गलों पर जब प्रकाश के किरण फैल जाते हैं तब अन्धकार के अणु वस्तुओं को आच्छादित नहीं कर सकते हैं। जब प्रकाश की किरणें दूर हो जाती हैं तब अन्धकार के पुद्गलों का प्रावरण आ जाने से अपन वस्तु-पदार्थ को नहीं देख सकते हैं।
(८) छाया-जो प्रकाश पर का आवरण है, वह छाया कही जाती है। छाया दो प्रकार की है।
(१) तद् वर्ण परिणत छाया और (२) प्राकार-प्राकृति रूप छाया। दर्पण आदि स्वच्छ द्रव्यों में देह-शरीर आदि के पुद्गल शरीर आदि के वर्णादि रूप में परिणाम पाते हैं। स्वच्छ द्रव्यों में मूल वस्तु-पदार्थ के वर्णादि रूप में परिणाम पाये हुए पुद्गलों को तद्वर्ण परिणत छाया के प्रतिबिम्ब कहा जाता है।
अस्वच्छ द्रव्य पर देह-शरीर आदि के पुद्गलों के मात्र आकार-प्राकृति प्रमाणे होते हुए परिणाम को जोधप-तडका में दिखाता है, वह प्राकार-प्राकृति रूप 'छाया' है। तद तथा प्राकार-प्राकृति ये दोनों छाया रूप होते हुए भी व्यवहार में अपन तद्वर्ण परिणाम रूप छाया को प्रतिबिम्ब तरीके पहिचानते हैं। जो प्रतिबिम्ब में आकार-प्राकृति और वर्ण ये दोनों स्पष्ट होते हैं, जबकि छाया में अस्पष्ट होते हैं।