Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
View full book text
________________
४४
]
बीतत्वाधिगमसूत्रे
[
१२४
प्रत्येक पदार्थ में से प्रतिसमय नल-पानी के फब्बारे की भांति स्कन्ध बहा करते हैं। वहीं रहे हुए पुद्गल प्रति सूक्ष्म होने से अपने देखने में नहीं पाते हैं। प्रति समय बहते वे पुद्गल प्रकाश आदि के द्वारा वर्तमान युग में वैज्ञानिक प्रयोगों द्वारा तदाकार पिंडित हो जाते हैं। तदाकार पिंडित हुए उन पुद्गलों को प्रपन सब प्रतिबिम्ब या छाया रूप में पहिचान सकते हैं ।
सारांश यह है कि छाया प्रकाश पर का आवरण है। जैसे-मेघाच्छादित सूर्य या मनुष्यादि की छाया। दर्पणादि स्वच्छ पदार्थों में जो मुख का प्रतिबिम्ब पड़ता है, वह प्रतिबिम्ब रूप छाया ही है।
(८) प्रातप-सूर्यादिक से होने वाले उष्ण प्रकाश को 'प्रातप' कहते हैं। तथा चन्द्रादिक से होने वाले शीतल प्रकाश को 'उद्योत' कहते हैं ।
ये सब पुद्गल स्वभावी या पुद्गल पर्याय रूप होने से पौद्गलिक हैं ।
विशेष-सूर्य के प्रकाश को जो 'पातप' कहने में पाया है, उसका कारण यह है कि-जो सूर्य है, वह ज्योतिष्क जाति के देवों का विमान है। उसमें देव रहते हैं। यह विमान अति मूल्यवान रत्नों का बना हुआ है। इसलिए उसमें से प्रकाश फैलता है। यह प्रकाश प्रातप तरीके प्राप्त होता है। इसलिए आतप अग्नि की भांति उष्ण होने से पुद्गल है। आतप उष्ण और श्वेत रंग में परिणमित पुद्गलों का समूह ही है । * प्रश्न-इतनी दूर रहने वाले सूर्य का प्रकाश भी यहां पृथ्वी को तथा अन्य वस्तुओं को
उष्ण-गरम बना देता है, तो वहाँ देव उसमें किस तरह रह सकते हैं ? उत्तर-सूर्य का प्रकाश पृथ्वी पर उष्ण-गरम होता है, किन्तु सूर्य विमान का स्पर्श शीत होता है। अग्नि के और सूर्य के प्रकाश में इतनी ही भिन्नता है। क्योंकि अग्नि आदि का स्पर्श भी उष्ण होता है और प्रकाश भी उष्ण होता है। जबकि सूर्य में ऐसा नहीं है। सूर्य का केवल प्रकाश ही उष्ण होता है, स्पर्श तो शीत होता है। सूर्य के प्रकाश को उष्णता ज्यों-ज्यों दूर जाती है, त्यों-त्यों अधिक हो जाती है। इससे वहां रहने वाले देवों को किसी प्रकार की बाधा नहीं आती है।
(१०) उद्योत-चन्द्र, चन्द्रकान्त मणि, कितने ही रत्न तथा औषधियों आदि के प्रकाश को 'उद्योत' कहने में आता है। उद्योत और प्रकाश ये दोनों प्रकाश स्वरूप ही हैं। उसमें शीत वस्तु के उष्ण प्रकाश को 'प्रातप' कहते हैं तथा अनुष्ण प्रकाश को 'उद्योत' कहने में आता है। * प्रश्न-जब सूत्र २३ में और सूत्र २४ में बताये हुए स्पर्शादि तथा शब्दादि दोनों ही
पुद्गल के पर्याय हैं तो इनके लिए पृथक् सूत्र रचने की क्या आवश्यकता है ?
एक ही सूत्र से कार्य चल सकता है ? उत्तर-२३ वें सूत्र में कहे हुए स्पर्श, रसादि पर्याय प्रणु और स्कन्ध दोनों में होते हैं । जबकि २४ वें सूत्र में कहे हुए शब्द आदि पर्याय सिर्फ स्कन्ध में ही होते हैं। परमाणु में रहे हुए स्पर्शादि के साथ उनका सम्बन्ध नहीं होता है तथा शब्द, बन्ध आदि पर्याय अनेक निमित्तभूत होने