Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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३६ ] श्रीतत्त्वार्याधिगमसूत्रे
[ ५।२३ क्षेत्रकृत-एक देशस्थित दो पदार्थों के विषय जो दूर हैं वे पर हैं और निकट हैं वे अपर हैं।
___ कालकृत-बीस वर्षों की अपेक्षा पच्चीस वर्ष वाला पर है तथा पच्चीस वर्ष की अपेक्षा बीस वर्ष वाला अपर है।
उक्त वर्तनादि कार्य यथासम्भवपने धर्मास्तिकायादिक द्रव्यों का ही है तथापि काल समस्त में निमित्तरूप कारण होने से उपकार रूप माना हुआ है। अर्थात्-तीन प्रकार के परत्वापरत्व में से यहाँ पर कालकृत परापरत्व की विवक्षा है ।। ५-२२ ।।
* पुद्गलस्य लक्षणम् * 卐 मूलसूत्रम्स्पर्श-रस-गन्ध-वर्णवन्तः पुद्गलाः ॥५-२३ ॥
* सुबोधिका टीका * पुद्गलाः स्पर्शः रसः गन्धः वर्ण इत्येवं लक्षणाः। तत्र स्पर्शो अष्टविधः अनुक्रमेण कठिनोमृदुर्गुरु-लघुःशीतोष्णः स्निग्धोरूक्षः । पञ्चविधः रसः तिक्तः कटुः कषायोऽम्लो मधुरेति । गन्धो द्विविधः सुरभिरसुरभिश्च । वर्णः पञ्चविधः कृष्णो नोलो लोहितः पीतः शुक्लेति ।
एवं चतुर्णां गुणानां विंशः भेदाः । प्रतिक्षणं चतुर्णां गुणानां यथासम्भवभेदाः प्रतिपुद्गलद्रव्ये प्राप्ताः । कठिनादिकानामथं प्रसिद्धम् ।। ५-२३ ॥ * सूत्रार्थ-पुद्गलद्रव्य स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण युक्त होता है ।। ५-२३ ।।
_ विवेचनामृतक पुद्गल स्पर्श, रस, गन्ध और वर्णवाले होते हैं। बौद्धदर्शन वाले 'पुद्गल' शब्द का जीव अर्थ में व्यवहार करते हैं तथा वैशेषिकादि दर्शनवाले पृथिव्यादि मूत्तिमान द्रव्यों में समान रूप से चारों गुण "स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण" नहीं मानते हैं; किन्तु पृथ्वी चारों गुण, जल गन्ध रहित तीन गुण, तेजस गन्ध, रसरहित द्विगुण तथा वायु को मात्र एक स्पर्श गुण वाला ही मानते हैं। मन को स्पर्शादि चतुःगुण रहित मानते हैं। इसलिए अन्य दार्शनिकों से पृथग्-भिन्नता प्रकट करनी, यही इस प्रस्तुत सूत्र का उद्देश्य है ।
वर्तमान सूत्र द्वारा यह सूचित होता है कि जीव और पुद्गल दोनों द्रव्य-पदार्थ भिन्न स्वरूपी हैं। परन्तु पुद्गल शब्द का व्यवहार जीव तत्त्व में नहीं होता। पृथ्वी, जल, तेज, वायु सब पुद्गल रूप से समान हैं। अर्थात्-ये सब स्पर्शादि चारों गुण युक्त हैं। वे पुद्गल स्कन्ध पाठ स्पर्शवाले नहीं होते हैं, किन्तु चार स्पर्शवाले सूक्ष्म इन्द्रिय अगोचर होते हैं।