Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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५।१६ ] पञ्चमोऽध्यायः
[ २७ जनेतरदर्शन पूर्व और पश्चिमादि का व्यवहार जो दिगद्रव्य के कार्यरूप मानते हैं, वह आकाशद्रव्य से पृथक् नहीं है। उसको उत्पत्ति आकाश द्वारा होती है। इसलिए कहते हैं कि जैसे दिग्द्रव्य को आकाश से पृथक् मानना अनावश्यक है, वैसे धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय द्रव्य का कार्य केवल आकाशद्रव्य से सिद्ध नहीं हो सकता।
यदि अाकाश ही को गति, स्थिति का नियामक "प्रेरक" माना जाय तो वह अनन्त अखण्ड द्रव्य है। जड़ चेतन को सर्वत्र गति एवं स्थिति करते रोक नहीं सकता । तथा विश्व के नियत संस्थान की अनुपपत्ति हो जाएगी। इसलिए धर्मास्तिकाय द्रव्य को तथा अधर्मास्तिकाय द्रव्य को आकाशास्तिकाय द्रव्य से स्वतन्त्र मानना अर्थात् स्वीकार करना न्याय-संयुक्त है। जड़ और चेतन गतिशील हैं, तो भी मर्यादित क्षेत्र में उनकी गति नियामक बिना अपने स्वभाव से मर्यादित नहीं मानी जा सकती है। इसलिये धर्मास्तिकाय एवं अधर्मास्तिकाय द्रव्य का अस्तित्व युक्तिपूर्वक सिद्ध होता है।
आकाशास्तिकाय द्रव्य का कार्य अवगाह-दान है। अर्थात् जो अवगाही धर्माधर्मपुद्गलजीव" द्रव्य हैं, उनको अवगाह देने का उपकार प्राकाशास्तिकाय द्रव्य का है ।। ५-१८ ।।
* पुद्गलानामुपकारः *
卐 मूलसूत्रम्शरीर-वाङ्-मनः-प्राणापानाः पुद्गलानाम् ॥ ५-१६ ॥
* सुबोधिका टीका * पुद्गलद्रव्यानां सामान्यतया द्विविंशतिभेदाः। तेषु पञ्चभेदाः जीवग्रहणे प्रावश्यकाः। तेऽपि पञ्चभेदाः द्विभागे विभक्ताः। कार्मण-वर्गणा, नोकर्मवर्गणा च । यैस्तु ज्ञानावरणादिकाष्टकर्मणि भवन्ति ते कार्मणवर्गणा । यैस्तु शरीरपर्याप्तिप्राणास्ते नोकर्मवर्गणा। तस्यापि चत्वारः भेदाः प्राहारवर्गणा, भाषावर्गणा, मनोवर्गणा, तेजसवर्गणेति च पञ्चविधानि शरीराण्यौदारिकादीनि वाङ्मनः प्राणापानाविति पुद्गलानामुपकारः। तत्र-तत्र शरीराणि यथोक्तानि । प्राणापानौ च नामकर्माणि व्याख्यातौ। द्वीन्द्रियादयो जिहन्द्रियसंयोगात् भाषात्वेन गृह णन्ति नान्ये । संज्ञिनश्च मनसतत्त्वेन गृह णन्ति नान्ये ।
उच्यतेऽत्र सकषायत्वाज्जीवः कर्मणो योग्यान् पुद्गलानादत्ते ।।
ऊष्मगुणः सन् दीपः स्नेहवा यथा समादत्ते । प्रादाय शरीरतया परिणमति चाथ तं स्नेहम् । तद्वत् रागादिगुणः स्वयोगवात्मदीप प्रादत्ते। स्कन्धानादाय