Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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५।१४ ]
पञ्चमोऽध्यायः
[ १६
ॐ विवेचनामृत ॥ पुद्गलद्रव्य में जो अणुद्रव्य है, उसका एक ही प्रदेश में किन्तु स्कन्धों की योग्यतानुसार एक से लेकर असंख्यात प्रदेशों में अवगाहन होता है। अनन्तप्रदेशी स्कन्ध असंख्यात प्रदेशों में अवगाहन नहीं कर सकते, क्योंकि लोक के प्रदेश असंख्यात ही हैं, न कि अनन्त । पुद्गल के सम्बन्ध में यह तथ्य विस्तार पूर्वक नीचे प्रमाणे विचारिये ।
पुद्गल द्रव्य व्यक्ति रूप में अनेक हैं। प्रत्येक पुद्गल द्रव्य के अवगाह क्षेत्र का अर्थात् स्थितिक्षेत्र का प्रमाण भिन्न-भिन्न होता है। कोई पुद्गल द्रव्य लोकाकाश के एक प्रदेश में रहता है, कोई पुद्गलद्रव्य लोकाकाश के दो प्रदेशों में रहता है, कोई पुद्गलद्रव्य लोकाकाश के तीन प्रदेशों में रहता है, यावत् कोई पुद्गलद्रव्य लोकाकाश के असंख्यप्रदेशों में भी रहते हैं ।
__ जैसे-परमाणु एक प्रदेश में ही रहता है। 'द्वयणुक' (दो परमाणुओं का स्कन्ध) एक प्रदेश में कि दो प्रदेश में रहता है। 'व्यणुक' (तीन परमाणुओं का स्कन्ध) एक, दो या तीन प्रदेशों में रहता है। इस तरह संख्यात प्रदेशवाला स्कन्ध एक, दो, तीन, यावत् संख्यात प्रदेशों में भी रह सकता है। असंख्य प्रदेशवाला स्कन्ध एक, दो, तीन, यावत् असंख्यातप्रदेशों में भी रह सकता है।
___ अनन्तप्रदेशवाला स्कन्ध एक, दो, तीन, यावत् संख्यात अथवा असंख्यातप्रदेशों में भी रह सकता है।
जिस तरह पुद्गलद्रव्य व्यक्ति रूपे अनेक होने से प्रत्येक के अवगाह क्षेत्र का प्रमाण भिन्नभिन्न होता है, उसी तरह पुद्गलद्रव्य के परिणमन में विविधता-विचित्रता होने से एक ही पुद्गलद्रव्य के अवगाह क्षेत्र का प्रमाण भी भिन्न-भिन्न काल की अपेक्षा भिन्न-भिन्न होता है ।
विवक्षित समय में एकप्रदेश में रहे हुए अनन्तप्रदेशी स्कन्ध कालान्तर में दो-तीन यावत् असंख्यातप्रदेशों में भी रहते हैं ।
इस तरह विवक्षित समय में असंख्यातप्रदेशों में रहा हुआ स्कन्ध कालान्तर में एकादि प्रदेश में भी रहता है । सामान्य जो स्कन्ध जितने प्रदेशों का है वह उतने प्रदेशों में अथवा उससे अल्प प्रदेशों में भी रह सकता है, किन्तु कदापि उससे अधिक प्रदेशों में नहीं रहता है।
पुद्गल द्रव्य का अवगाहक्षेत्र न्यून में न्यून अर्थात् कम-से-कम एकप्रदेश और अधिक से अधिक लोकाकाश जितना असंख्यातप्रदेश होता है। चाहे जितने विशाल पुद्गल स्कन्ध हों वे भी लोकाकाश में सब समा जाते हैं।
* प्रश्न-एक प्रदेश में अनन्तप्रदेशी स्कन्ध किस तरह रह सकते हैं ?
उत्तर-जैसे पुद्गलों का अत्यन्त सूक्ष्म, सूक्ष्मतर और सूक्ष्मतम होने का स्वभाव है, वैसा आकाश का पुद्गलों को उसी माफिक अवगाह देने का स्वभाव है। अतः अनन्तप्रदेशी एक स्कन्ध तो क्या, किन्तु अनन्तप्रदेशी अनन्त स्कन्ध भी एक प्रदेश में अवश्य ही रह सकते हैं।