Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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५।११ ] पञ्चमोऽध्यायः
[ १५ * प्रश्न-धर्मास्तिकायादिक के प्रदेश तथा पुद्गल के परमाणु में क्या भिन्नता है ?
उत्तर–परिमाण की दृष्टि से किसी प्रकार की भिन्नता नहीं है, इतना ही नहीं किन्तु क्षेत्र प्रमाण भी दोनों का समान है तथा वे अविभाज्य अंश हैं, तो भी एक आकाशप्रदेश के अवगाह में भी जैसे अनन्त परमाणु समा सकते हैं, ऐसा स्वभाव धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय तथा आकाशास्तिकाय के प्रदेशों का नहीं है।
जैसे-परमाणु अपने द्वयणुकादि स्कन्ध से पृथक्-जुदा रहता है, वैसे प्रदेश अपने स्कन्ध से पृथक्-अलग नहीं होते हैं। परिमाण की दृष्टि से प्रदेश तथा परमाणु समान हैं, तो भी भिन्न स्वभावी हैं ।। ५-१० ।।
* परमाणौ प्रदेशानां प्रभावः *
卐 मूलसूत्रम्
नारणोः ॥५-११॥
* सुबोधिका टोका * परमाणोः प्रदेशाः नैव जायन्ते। अनादिरमध्योऽप्रदेशो हि परमाणुः । प्रत्राणोः प्रदेशानां निषेधः कृतः तत् द्रव्यरूपप्रदेशानामेव । अर्थात् परमाणुः स्वयमपि प्रदेशरूपैकप्रदेशवानपि । द्वितीयादिकप्रदेशाभावात् । निश्चयनयेन तु सर्वाणि द्रव्याणि प्रात्मप्रतिष्ठितानि आधारापेक्षाभावात्। अतः धर्माधर्मपुद्गलजीवद्रव्याणि अपि वस्तुतः स्वाधारवन्ताः ।। ५-११ ।।
* सूत्रार्थ-परमाणु के प्रदेश नहीं होते हैं ।। ५-११ ।।
卐 विवेचनामृत परमाणु के प्रदेश नहीं होते हैं। उसके आदि, मध्य और प्रदेश इनमें से कुछ भी नहीं होता क्योंकि जो अनेकप्रदेशी होगा उसी में आदि मध्य विभाग हो सकते हैं। जो एकप्रदेशी है वह तो अपना स्वयं का एक प्रदेश ही रखता है। अत: उसमें मध्य का विभाग नहीं हो सकता।
अणु “परमाणु" अप्रदेशी है। अर्थात्-अणु के-परमाणु के प्रदेश नहीं होते हैं ।
अणु स्वयं ही अविभाज्य अन्तिम अंश है। अणु के भी प्रदेश होवे तो वह अणु नहीं कहला सकता क्योंकि अणु को आँख से कदापि नहीं देख सकते हैं। उसे तो विशिष्ट ज्ञान के बल से ही जाना जाता है। अणु निरवयव है। उसके आदि, मध्य और अन्तिम कोई भी अवयव नहीं है।
आज के युग में वैज्ञानिकों ने माना हुआ है कि अणु यह वास्तविक अणु नहीं है, किन्तु असंख्यात प्रदेशात्मक वा अनन्त प्रदेशात्मक एक स्कन्ध है।