Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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५॥३ ]
पञ्चमोऽध्यायः प्रस्तुत सूत्र से आगे कितनेक सूत्रों तक द्रव्य के सामान्य तथा विशेष धर्मों का वर्णन करने के बाद पुनः इनके पारस्परिक साधर्म्य एवं वैधर्म्य भाव को बताया है। साधर्म्य का अर्थ होता है सामान्यधर्म-समानता एवं वैधर्म्य का अर्थ होता है विरुद्ध धर्म-असमानता।
प्रस्तुत सूत्र में जो द्रव्यत्व का विधान है, वह धर्मास्तिकायादि पाँच पदार्थों का द्रव्यत्व रूप से साधर्म्य है; और उसी में वैधर्म्य भाव गुण-पर्यायापेक्षी है।
इसीलिए तो कहा है कि- "गुरणानामाश्रयोः द्रव्यम्" और पर्याय पलटन स्वभावी है। [द्रव्य का लक्षण इस अध्याय के ३७ वे सूत्र में कहेंगे।] ॥ ५-२ ॥
* धर्मास्तिकायाविद्रव्येषु साधर्म्य-समानता * 卐 सूत्रम्
नित्याऽवस्थितान्यरूपाणि च ॥ ५-३ ॥
* सुबोधिका टीका * एतानि पूर्वोक्तानि द्रव्याणि नित्यानि भवन्ति । तद् भावाव्ययं नित्यमिति । वक्ष्यते अवस्थितानि च। अरूपाणि च । न हि कदाचित् पञ्चत्वं भूतार्थत्वं च व्यभिचरन्ति । नैषां रूपमस्ति । रूपं मूति - मूश्रियाश्च स्पर्शादय इति ॥ ५-३ ॥
* सूत्रार्थ-पूर्वोक्त द्रव्य नित्य, अवस्थित और अरूपी हैं। अर्थात्-सूत्रों के द्वारा जो पूर्व विवेचन किये गये हैं, वे द्रव्य नित्य, अवस्थित तथा अरूपी हैं तथा व्यय नहीं होने से नित्य हैं ॥ ५-३ ॥
卐 विवेचनामृत 卐 धर्मास्तिकाय इत्यादि पाँच द्रव्य नित्य और अवस्थित-स्थिर हैं, तथा पुद्गल के अतिरिक्त चार द्रव्य अरूपी हैं। धर्मास्तिकायादि पाँच द्रव्यों में नित्यता तथा अवस्थितता का एवं पुद्गल बिना चार द्रव्यों में अरूपीपने का साधर्म्य यानी समानता है ।
___ * नित्यता-जिन धर्मों का विनाश न हो वे नित्य हैं। अस्तित्वादि सामान्य धर्मों का तथा प्रतिहेतुतादि विशेष धर्मों का कभी विनाश नहीं होने से धर्मास्तिकायादि पाँच द्रव्य नित्य हैं।
* अवस्थितता-जिन धर्मों का परावर्तन यानी संक्रमण नहीं होता वे अवस्थित हैं। जीव-आत्मा में जड़ के गुणों का और जड़ में जीव-आत्मा के गुणों का कभी परिवर्तन यानी संक्रमण नहीं होता है। वे द्रव्य अपने-अपने गुणों से अवस्थित रहते हैं। अथवा अवस्थान यानी