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ग्रंथोमां को छे. प्रमेयकमलमार्तण्ड तथा न्यायकूमदचन्द्र आदि ग्रंथोना कर्ता प्रसिद्ध दिगंबराचार्य प्रभाचन्द्रे पण आ प्रकरणोन मुख्यतया सामे राखीने स्त्रीनिर्वाण तथा केवलिभुक्तिनो पूर्वपक्ष रच्यो छे. केटलीये शताब्दीओ सुधी आ ग्रंथनुं खूब महत्व अन प्रचार हशे ए आ उपरथी समजी शकाय छे. वादिवेताल शांतिसृरिए रचेली उत्तराध्ययनसूत्रनी पाइय टीकामां आवती युक्तिओने आधारे मनिचन्द्रसूरिना शिष्य वादी देवसूरिए दिगंबराचार्य कमदचन्द्रनो पाटणमां पराजय को हतो आ प्रसिद्ध वात छ.' वादिवेताल शांतिसूरिए उत्तराध्ययन सूत्रनी पाइय टीकामां शाकटायनविरचित स्त्रीनिर्वाणप्रकरणने सामे राखीने ते आधार लगभग बधुं लख्यु छे ए वात आ ग्रंथन द्वितीय परिशिष्ट जोबाथी समजाशे.
___ आ संबंधमां पं. दलसुखभाई मालवणियाए न्यायावतारवातिकवृत्तिना टिप्पणमां (पृ० २८५) जे लख्युं छे ते पण जाणवा योग्य होवाथी नीचे उद्धत करवामां आवे छे--
"स्त्री मोक्षकी दार्शनिक चर्चा संस्कृतमें शाकटायनने सर्वप्रथम की हो ऐसा जान पड़ता हैं। उनके पहले चर्चा चल पड़ी थी इसमें तो संदेह नहीं किन्तु उस चर्चाको व्यवस्थित रूप सर्व प्रथम उन्हींने दिया है यह इसलिए संभव जान पड़ता
नेवाले श्वेताम्बर दार्शनिक ग्रंथ और स्त्रीमोक्षका निराकरण करनेवाले समस्त दिगम्बर दार्शनिक ग्रन्थ शाकटायनके स्त्रीमुक्ति प्रकरणको ही आधारभूत मान करके चलते हैं। श्वेताम्बर अपने पक्षके समर्थनमें उक्त प्रकरणका उपयोग करते हैं और दिगम्बर उक्त प्रकरणकी प्रत्येक युक्तिको पूर्वपक्षमें रखकर उसका खण्डन करते हैं।
आचार्य जिनभद्रने युक्तिपुरःसर वस्त्रका समर्थन करनेका प्रयत्न किया है किन्तु स्त्रीमुक्तिकी चर्चा उन्होंने नहीं की। आचार्य कुन्दकुन्दने इस प्रश्नको उठाया है किन्तु वह दार्शनिक ढंगकी चर्चा न होकर आगमिक मालम होती है । उनके बाद ही इस चर्चाने गंभीर रूप पकड़ा है इसमें तो संदेह है ही नहीं। पूज्यपाद जैसे आचार्य मात्र निषेध करके ही चुप रह जाते हैं, विशेष युक्ति नहीं देते। अकलंकने भी विशेष चर्चा नहीं की।
प्रतीत होता है कि स्त्रीमुक्तिकी चर्चा प्रथम यापनीय और दिगम्बरोंके बीच शुरू हई। यापनीयोंने स्त्रीमोक्षका समर्थन किया। उन्हींकी युक्तिओंको श्वेताम्बरोंने अपनाया। आचार्य हरिभद्रने इस चर्चाको श्वेताम्बरीय ग्रन्थोंमें प्रविष्ट की हो ऐसा जान पड़ता है। आचार्य हरिभद्रने इस चर्चाको यापनीयोंसे लिया है इस विषयमें सन्देह नहीं। क्यों कि उन्होंने ललितविस्तरामें इस विषय में प्रमाणभूत यापनीय तन्त्रको साक्षी रूपसे उद्धृत किया है। ललितविस्तरा पृ. ५७।।
इसके बाद तो यह चर्चा मुख्य रूपसे श्वेताम्बर और दिगम्बरोंके बीच हुई है। किन्तु दोनोंकी चर्चाकी मूल भित्ति शाकटायनका स्त्रीमुक्तिप्रकरण ही रहा है। उसीके आधार पर अभयदेव, प्रभाचन्द्र, वादीदेवसूरि और यशोविजयजीने इस चर्चाको उत्तरोत्तर पल्लवित की है।
१. जुओ द्वितीय तथा तृतीय परिशिष्ट । २. उत्तराध्ययनग्रन्थटीका श्रीशान्तिसूरिभि:।
विदधे वादिनागेन्द्रसन्नागदमनी हि सा ॥ ८९॥ शिष्येण मुनिचन्द्रस्य सूरेः श्रीदेवसूरिणा। तन्मध्यत उपन्यस्तस्त्रीनिर्वाणबलादिह ॥९॥ पुरः श्री सिद्धराजस्य जितो वादे दिगम्बर : ।। तदीयवचसां मिश्रा विद्वद्दःसाधसाधिका ।। ९१ ॥
--प्रभावकचरितमा शान्तिसूरिप्रबन्ध ३. देखो स्त्रीमुक्तिप्रकरणमें पूर्वपक्ष। ४. विशेषा. गा. २५५८से। ५. सूत्रप्राभृत (षट्प्राभृतान्तर्गत) गा० २३-२६ । ६. सर्वार्थ. १०.९ । राजवा० पृ० ३६६ ।। ७. सन्मति. टी० पृ० ७५१ । न्यायकु. पृ० ८६५। प्रमेयक० पृ० ३२८ । शास्त्रवा० यशो० पृ० ४२४-४३०। स्याद्वादर०
(त्रुटित) पृ० ११२२ ।
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