Book Title: Stree Nirvan Kevalibhukti Prakarane Tika
Author(s): Shaktayanacharya, Jambuvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 30
________________ 23 सूत्रकृतांगनी वृत्तिमां शीलाचार्ये केवलिभुक्तिप्रकरणने आधारे ज लगभग केवलिभुक्तिनी चर्चा करेली छे. आज शीलाचार्ये आचारांग सूत्र उपर पण वृत्ति रचेली छे. विक्रम संवत् १३२७मां ताडपत्र उपर खाएली खंभातना श्रीशान्तिनाथ जैन ज्ञानभंडारनी (क्रमांक ४) प्रतिमां आचारांग सूत्रना द्वितीय श्रुतस्कन्धनी 'शीलाचार्यविरचित वृत्तिना अन्तमां नीचे प्रमाणे उल्लेख छ -- "आचारटीकाकरणे यदाप्तं पुण्यं मया मोक्षगमैकहेतुः । तेनापनीयाशुभराशिमुच्चैराचारमार्गप्रवणोऽस्तु लोकः ॥१॥ शकनपकालातीतसंवत्सरशतेष सप्तसू चतुरशीत्यधिकेषु वैशाखपञ्चम्यामाचारटीका दब्धति । शीलाचार्येण कृता गम्भूतायां स्थितेन टीकषा। सम्यगुपयुज्य शोध्या मात्सर्यविनाकृतराय : ॥२॥" । विक्रम संवत् १५६५मां कागळ उपर लखाएली लालभाई दलपतभाई विद्यामन्दिर (अमदावाद)नी (क्रमांक ३६८०) प्रतिमां तथा अन्य पण अनेक प्रतिओमां नीचे प्रमाणे उल्लेख छ --- "आचारटीकाकरणे . . . . . . ॥१॥ शकनपकालातीतसंवत्सरशतेषु सप्तसु अष्टानवतीत्यधिकेषु वैशाखशुद्धपञ्चम्यामाचारटीका कृतेति।" आ बने उल्लेखो जोतां आचारांगसूत्रनी वृत्तिनी रचना शीलाचार्ये शकसंवत् ७८४ (विक्रम सं. ९१९) अथवा प्रत्यन्तर प्रमाणे शकसंवत् ७९८ (विक्रम सं. ९३३) मां पूर्ण करी हती. सूत्रकृतांगनी टीकानी रचना तो त्यार पछी केटलाक वर्षे आवे. १. आ वृत्तिना कर्ता- प्रसिद्ध नाम शीलांकाचार्य छ, परन्तु ग्रन्थकारे पोतानुं नाम शीलाचार्य जणावेलं छे तेथी अमे अहीं शीलाचार्य एवो नाम निर्देश कर्यो छे. आगमोदय समिति प्रकाशित आचारांगवृत्तिमा प्रथम श्रुतस्कन्धनी समाप्तिमां नीचे मुजब रचना समयनो पाठ छपायेलो छे-- "द्वासप्तत्यधिकेषु हि शतेषु सप्तसु गतेषु गुप्तानाम् । संवत्सरेषु मासि च भाद्रपदे शुक्लपञ्चम्याम् ॥१॥ शीलाचार्येण कृता गम्भूतायां स्थितेन टीकषा। सम्यगुपयुज्य शोध्यं मात्सर्यविनाकृतैरायँ : ॥२।। कृत्वाऽऽचारस्य मया टीकां यत् किमपि सञ्चितं पुण्यम् । तेनाऽऽप्नुयाज्जगदिदं निर्वृतिमतुलां सदाचारम् ॥३॥ वर्णः पदमथ वाक्यं पद्यादि च यन्मया परित्यक्तम् । तच्छोधनीयमत्र च व्यामोहः कस्य नो भवति ? ॥४॥ तत्त्वादित्याऽपरामिधानश्रीमच्छीलाचार्यविहिता वृत्तिर्बह्मचर्यश्रुतस्कन्धस्य आचाराङ्गस्य समाप्ता ।" आ पाठ प्रमाणे आचारांगना प्रथम श्रुतस्कन्धनी वृत्तिनी रचना शीलाचार्य गुप्त संवत् ७७२मां पूर्ण करी हती एम. फलित थाय छे. आ गुप्त संवतना अर्थ विष आज सुधी घणी चर्चाओ चाली छे. (जुओ 'इण्डियन एण्टिक्वेरी' इस्वीसन् १८८६ पुस्तक १५ १० १८८, जैन साहित्य संशोधक ग्रन्थमालामां प्रकाशित जीतकल्पसूत्रनी प्रस्तावना तथा चउप्पन्न-महापुरुसचरियंनी प्रस्तावना वगेरे. डो. फ्लीट इण्डियन एण्टिक्वेरीमा जणावे छे के 'शीलाचार्ये गुप्त संवत् अने शकसंवत् एक समजीने शकसंवत् अर्थमां गुप्त संवत्नो निर्देश कर्यो छे' वगेरे) परन्तु विशेष तपास करतां, सौथी प्राचीन गणी शकाय एवी खंभातनी बे ताडपत्रीय प्रतिओमां तथा ला. द. विद्यामन्दिर (अमदावाद)नी विक्रम सं. १५६५ तथा १६६८मां लखाएली अमे जोएली प्रतिओमा प्रथम श्रुतस्कन्धनी वृत्तिने अन्ते आवो ऊपर जणावेलो कोई ज पाठ जोवामां आवतो नथी. मात्र बीजा श्रुतस्कन्धनी वृत्तिने अंते समग्र ग्रन्थ समाप्त थाय छे ते प्रसंगे ज रचना समय आपेलो छ जे अमे अहीं दर्शाव्यो छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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