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आचार्य हरिभद्रसूरि प्रणीत उपदेशपद : एक अध्ययन : २१ नयों द्वारा अभिमत तात्त्विक स्वरूप, दुषमाकाल में चरित्र की स्थिति आदि विषयों का प्रतिपादन विभिन्न आख्यानों द्वारा विस्तृत रूप में किया गया है।
धर्माचरण का निरतिचार पालन करने से श्रेय पद की प्राप्ति होती है। इस सम्बन्ध में आचार्य हरभिद्र ने शंख कलावती का बड़ा आख्यान दिया है। टीकाकार ने इस आख्यान का ४५१ आर्या छन्दों में विस्तार किया है। इसी प्रसंग में शक्कर और आटे से भरे हुए बर्तन के उलट जाने, खांड मिश्रित सत्तू
और घी की कुण्डी उलट जाने एवं उफान से निकले हुए दूध के हाथ पर गिर जाने से किसी सज्जन पुरुष के कुटुम्ब की दयनीय स्थिति का बड़ा ही सजीव चित्रण वृत्तिकार ने किया है। ____ धर्म, सुख, पाण्डित्य आदि का प्रश्नोत्तर रूप में स्वरूप प्रतिपादित करते हुए कहा है कि- धर्म क्या है? उत्तर-जीव दया। सुख क्या है?- उत्तरआरोग्य। स्नेह क्या है? - उत्तर-सद्भाव। पाण्डित्य क्या है? उत्तर-हिताहित का विवेक। विषम क्या है? उत्तर-कार्य की गति। प्राप्त करने योग्य क्या है? उत्तरमनुष्य द्वारा गुण ग्रहण। सुख से प्राप्त करने योग्य क्या है? उत्तर-सज्जन पुरुष तथा कठिनता से प्राप्त करने योग्य क्या है? उत्तर- दुर्जन पुरुष।४
आगे अनेक विषयों को सोदाहरण प्रस्तुत करते हुए धर्मरत्न प्राप्ति की योग्यता को समझाया गया है।५ विषयाभ्यास में शुक और भावाभ्यास में नरसुन्दर,४६ की तथा शुद्धयोग में दुर्गत नारी और शुद्धानुष्ठान में रत्नाशिख की कथा दी है।
ग्रन्थ का उपसंहार करते हुए आचार्य हरिभद्र ने कहा है कि शाश्वत सुख चाहने वाले पुरुष को कल्याणमित्र-योगादि रूप विशुद्ध योगों में धर्म सिद्ध करने का सम्यक् प्रयास करना चाहिए।४८
धर्मकथा प्रधान इस उपदेशपद की लघुकथाओं का विभाजन निम्नलिखित वर्गों में किया जा सकता है-४९ ।। १. कार्य एवं घटना प्रधान कथाएं
१. इन्द्रदत्त (गाथा १२), २. धूर्तराज (गाथा ८६), ३. शत्रुता (गाथा ११७) २. चरित्र प्रधान कथाएं
१. मूलदेव (गाथा ११), २. विनय (गाथा २०), ३. शीलवती (गाथा
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